लखनऊ- “यह खूबसूरत धरती हमें बनी-बनाई मिली है, इसे और सुंदर बनाना हमारा कर्तव्य है।” यह विचार सिर्फ पर्यावरण प्रेमियों तक सीमित नहीं, बल्कि आज उत्तर प्रदेश सरकार की नीति और दृष्टिकोण में भी स्पष्ट दिखाई देता है। जैव विविधता, जिसमें धरती पर मौजूद हर प्रकार के पेड़-पौधे, जीव-जंतु, जलस्रोत और पारिस्थितिकी तंत्र शामिल है, आज एक गंभीर विषय बन चुका है। और इस दिशा में योगी सरकार ने बीते वर्षों में कई उल्लेखनीय कदम उठाए हैं, जिनके परिणाम अब जमीन पर भी दिखने लगे हैं।
Dolphin और बाघों की बढ़ती आबादी
उत्तर प्रदेश ने जैव विविधता के संरक्षण में देशभर में उदाहरण पेश किया है। देश में सबसे अधिक गंगा Dolphin उत्तर प्रदेश में पाई जाती हैं। यह संकटग्रस्त प्रजाति गंगा नदी के स्वास्थ्य की प्रतीक मानी जाती है। इनका संरक्षण राज्य की नदियों की स्वच्छता और जीवन्तता को दर्शाता है।
वहीं, बाघों की संख्या भी राज्य में बढ़ रही है। वर्ष 2018 में जहाँ बाघों की संख्या 173 थी, वहीं 2022 में यह बढ़कर 205 तक पहुंच गई। यह उत्तर प्रदेश के वन्यजीव संरक्षण कार्यक्रमों की सफलता का संकेत है। दुधवा और पीलीभीत टाइगर रिज़र्व, बाघों के लिए सुरक्षित आवास बने हुए हैं, जहाँ वन विभाग निगरानी और संरक्षण कार्यों को नियमित रूप से अंजाम दे रहा है।
कछुआ संरक्षण और गंगा किनारे का विशेष फोकस
गंगा और यमुना जैसी नदियाँ सिर्फ जल स्रोत नहीं, बल्कि अनेक जल-जीवों की प्राकृतिक आवास स्थल हैं। योगी सरकार ने कछुओं के संरक्षण को प्राथमिकता दी है, जिनका पारिस्थितिकी में महत्वपूर्ण स्थान है। सारनाथ और कुकरैल में कछुआ प्रजनन केंद्र स्थापित किए गए हैं। गंगा किनारे बसे मेरठ, हापुड़, बिजनौर, मुजफ्फरनगर, अमरोहा और बुलंदशहर जिलों पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है ताकि कछुओं की संख्या में वृद्धि की जा सके और उनका प्राकृतिक आवास संरक्षित रहे।
हरियाली बढ़ाने के लिए व्यापक पौधरोपण अभियान
जैव विविधता के मूल तत्वों में एक है हरित क्षेत्र का विस्तार। उत्तर प्रदेश में 2017 से अब तक 204.65 करोड़ पौधे लगाए जा चुके हैं। वर्ष 2024-25 के लिए सरकार का लक्ष्य है 35 करोड़ पौधे लगाने का, जिसमें से 14 करोड़ पौधे गंगा, यमुना, चंबल, केन, गोमती जैसी नदियों के किनारे लगाए जाने हैं।
यह अभियान केवल वृक्षारोपण तक सीमित नहीं, बल्कि अमृत सरोवरों के किनारे और वेटलैंड क्षेत्रों में भी हरियाली बढ़ाने पर जोर दिया जा रहा है। यही वजह है कि ISFR-2023 रिपोर्ट के अनुसार, उत्तर प्रदेश का वन क्षेत्र 559.19 वर्ग किलोमीटर बढ़ा है।
वेटलैंड और प्राकृतिक खेती को बढ़ावा
जैव विविधता के संरक्षण में वेटलैंड्स (आर्द्रभूमियाँ) की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। ये स्थल न केवल प्रवासी पक्षियों और जलजीवों का घर हैं, बल्कि भूजल संरक्षण और कार्बन सिंक के रूप में भी कार्य करते हैं। योगी सरकार वेटलैंड्स की सूची तैयार कर उन्हें संरक्षित दर्जा देने का कार्य कर रही है।
साथ ही, विषमुक्त प्राकृतिक खेती को भी बढ़ावा दिया जा रहा है, जिससे मिट्टी, जल और जैविक विविधता पर रासायनिक दवाइयों का दुष्प्रभाव न पड़े। इससे न केवल पर्यावरण की रक्षा होती है, बल्कि किसानों को दीर्घकालीन लाभ भी मिलता है।
गिद्धों के संरक्षण की पहल
एक समय लगभग विलुप्त हो चुके गिद्धों के संरक्षण के लिए भी उत्तर प्रदेश सरकार ने अहम कदम उठाए हैं। गोरखपुर में जटायु संरक्षण केंद्र की स्थापना इसी दिशा में एक बड़ा प्रयास है। गिद्ध पारिस्थितिकी संतुलन के लिए अत्यंत आवश्यक पक्षी हैं और उनके पुनर्स्थापन से प्राकृतिक सफाई व्यवस्था को भी मजबूती मिलती है।
सरकार की सोच और नीति में दिखता है समर्पण
योगी आदित्यनाथ सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि जैव विविधता का संरक्षण केवल पर्यावरणीय मुद्दा नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक जिम्मेदारी भी है। जल, जंगल और जमीन के साथ संतुलन बनाना केवल नीतियों से नहीं, अपितु जागरूकता, सहभागिता और सशक्त प्रबंधन से संभव है।
सरकार लोगों को पर्यावरण के प्रति जागरूक करने के लिए भी लगातार कार्य कर रही है, चाहे वह स्कूलों में कार्यक्रम हों या स्थानीय स्तर पर वन मित्र समितियाँ। यही कारण है कि उत्तर प्रदेश न केवल आर्थिक या औद्योगिक मोर्चे पर, बल्कि पर्यावरणीय विकास में भी राष्ट्रीय मानकों पर अग्रणी बन रहा है।