नई दिल्ली । Bangladesh में करेंसी नोटों के डिज़ाइन में बड़ा बदलाव देखने को मिला है। देश की अंतरिम सरकार ने 1 जून 2025 से नई सीरीज के नोट जारी किए हैं, जिनमें अब तक हर बांग्लादेशी नोट पर प्रमुखता से नजर आने वाले राष्ट्रपिता शेख मुजीबुर रहमान की तस्वीर को हटा दिया गया है। यह पहली बार है जब किसी बांग्लादेशी करेंसी नोट पर उनकी छवि नहीं दिखेगी।

जारी किए गए नए नोट 1,000 टका, 50 टका और 20 टका के मूल्यवर्ग में हैं। इनमें मानव आकृति के बजाय अब प्राकृतिक दृश्य, सांस्कृतिक धरोहरें और ऐतिहासिक स्थलों को प्रमुखता दी गई है। यह बदलाव देश की सांस्कृतिक पहचान और विविधता को उजागर करने के उद्देश्य से किया गया है। हालांकि, सरकार ने स्पष्ट किया है कि पहले से प्रचलन में मौजूद शेख मुजीबुर रहमान की तस्वीर वाले पुराने नोट और सिक्के मान्य बने रहेंगे।

नई नोटों की विशेषताएं

Bangladesh बैंक के अनुसार, नई नोट सीरीज में किसी भी इंसानी चित्र या चेहरा नहीं है। उनकी जगह पर अब देश की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत को चित्रित किया गया है। इसमें बांग्लादेश के प्रमुख हिंदू और बौद्ध मंदिरों की झलक, दिवंगत कलाकार जैनुल आबेदीन की प्रसिद्ध कलाकृतियां, और 1971 के मुक्ति संग्राम में शहीद हुए लोगों की स्मृति में बने राष्ट्रीय शहीद स्मारक की छवियां शामिल हैं।

ये परिवर्तन बांग्लादेश की बहुसांस्कृतिक पहचान और धार्मिक सहिष्णुता को दर्शाते हैं। सरकार ने इस कदम को ‘नोटों की नई सोच’ करार देते हुए कहा है कि अब देश की विरासत को ज्यादा व्यापक दृष्टिकोण से प्रस्तुत किया जाएगा।

राजनीतिक बदलाव की छाया

इस परिवर्तन को केवल करेंसी सुधार के रूप में नहीं देखा जा रहा, बल्कि इसके राजनीतिक निहितार्थ भी स्पष्ट हैं। शेख मुजीबुर रहमान, जिन्हें ‘बंगबंधु’ के नाम से जाना जाता है, बांग्लादेश के संस्थापक नेता थे और वर्तमान में भारत में रह रहीं पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के पिता थे।

बीते कुछ महीनों में देश में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए, जिनमें छात्रों और विपक्षी दलों की भागीदारी प्रमुख रही। इन प्रदर्शनों ने शेख हसीना की सरकार को कमजोर कर दिया और अंततः उसे सत्ता से हटना पड़ा। इसके बाद हसीना भारत चली गईं और तब से वहीं रह रही हैं।

राजनीतिक अस्थिरता और हसीना के प्रति नाराजगी के बीच देश में शेख मुजीबुर रहमान की विरासत पर भी सवाल उठने लगे। राजधानी ढाका और अन्य शहरों में उनके पोस्टरों और भित्तिचित्रों को क्षतिग्रस्त किया गया। यहां तक कि कुछ स्थानों पर उनके घरों को भी आग के हवाले कर दिया गया।

इस पृष्ठभूमि में करेंसी नोटों से उनकी तस्वीर हटाना केवल एक प्रशासनिक निर्णय नहीं, बल्कि मौजूदा सत्ता परिवर्तन और विचारधारा में बदलाव का प्रतीक भी माना जा रहा है।

मुजीबुर रहमान की ऐतिहासिक भूमिका

शेख मुजीबुर रहमान को बांग्लादेश की स्वतंत्रता का शिल्पकार माना जाता है। उन्होंने 1971 के मुक्ति संग्राम में देश को पाकिस्तान से अलग करवाने में अहम भूमिका निभाई थी। परंतु उनकी विरासत को लेकर देश में मतभेद हमेशा से रहे हैं, खासतौर पर जब उनके परिवार की राजनीतिक शक्ति लंबे समय तक बनी रही।

15 अगस्त 1975 को शेख मुजीब और उनके परिवार के अधिकांश सदस्यों की हत्या एक सैन्य तख्तापलट के दौरान कर दी गई थी। उस समय शेख हसीना विदेश में थीं और इस प्रकार उनकी जान बच गई। बाद में, हसीना ने राजनीति में प्रवेश किया और दशकों तक बांग्लादेश की सत्ता पर काबिज रहीं।

भविष्य की दिशा

नए नोटों के साथ बांग्लादेश अब एक नए प्रतीकात्मक युग में प्रवेश कर रहा है, जहां राष्ट्र की पहचान केवल एक व्यक्ति विशेष से जुड़ी न होकर उसके समृद्ध सांस्कृतिक इतिहास और विविध विरासत से जुड़ी होगी।

हालांकि, यह बदलाव समाज में एकराय नहीं ला पाया है। एक वर्ग इसे सांस्कृतिक विविधता का स्वागतयोग्य प्रतीक मानता है, जबकि दूसरा वर्ग इसे शेख मुजीबुर रहमान की विरासत के प्रति अपमानजनक कदम मान रहा है।

देश के वरिष्ठ पत्रकार और विश्लेषक इस परिवर्तन को ‘रचनात्मक लेकिन संवेदनशील’ बता रहे हैं। उनका कहना है कि बांग्लादेश को एक समावेशी पहचान देने की कोशिश की जा रही है, परंतु राष्ट्रपिता की भूमिका को नजरअंदाज करना देश की ऐतिहासिक समझ को कमजोर कर सकता है।

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