नई दिल्ली । मध्य पूर्व में लंबे समय से जारी संघर्ष के बीच Israel-Hamas के बीच एक महत्वपूर्ण मानवीय समझौता हुआ है, जिसने फिर से शांति की उम्मीदें जगा दी हैं। इस समझौते के तहत, हमास द्वारा बंधक बनाए गए 28 इजराइली नागरिकों को रिहा किया जाएगा। इसके बदले में इजराइल 125 फिलिस्तीनी कैदियों को रिहा करेगा और साथ ही 180 फिलिस्तीनी नागरिकों के शव (कंकाल) भी हमास को सौंपेगा।
यह समझौता क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय दबावों के बीच सामने आया है, जहां लगातार संघर्षों और हवाई हमलों के चलते हजारों लोगों की जान गई है और लाखों विस्थापित हुए हैं। इस पहल को मानवीय दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण माना जा रहा है, जहां युद्ध की त्रासदी से प्रभावित परिवारों को कुछ राहत मिलने की उम्मीद है।
रिहाई की शर्तें और प्रक्रिया
समझौते के तहत, हमास द्वारा बंदी बनाए गए 28 इजराइली नागरिकों में अधिकांश वे लोग हैं जिन्हें गाजा पट्टी पर चल रही झड़पों के दौरान अगवा किया गया था। इनमें महिलाएं, वृद्ध और कुछ युवा भी शामिल हैं। इन सभी को एक निर्धारित चरणबद्ध प्रक्रिया के तहत अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षण में रिहा किया जाएगा। रिहाई से पहले सभी बंदियों की चिकित्सकीय जांच और पुष्टि की जाएगी कि वे सुरक्षित हैं।
इसके जवाब में, इजराइल सरकार 125 फिलिस्तीनी कैदियों को मुक्त करेगी, जिनमें से अधिकतर को कथित रूप से सुरक्षा से जुड़े मामलों में बंद किया गया था। मानवाधिकार संगठनों ने पहले भी इन कैदियों की रिहाई की मांग की थी, और अब यह समझौता उनके लिए राहत की खबर लेकर आया है।
180 शवों की वापसी: एक संवेदनशील मुद्दा
इस समझौते का सबसे संवेदनशील पहलू 180 फिलिस्तीनी कंकालों की वापसी है। ये वे शव हैं जिन्हें इजराइली सुरक्षा बलों ने विभिन्न सैन्य अभियानों के दौरान बरामद किया था और जिन्हें अब तक परिजनों को सौंपा नहीं गया था। इन शवों को अब पहचान प्रक्रिया पूरी होने के बाद गाजा पट्टी में उनके परिवारों को सौंपा जाएगा।
फिलिस्तीनी समुदाय के लिए यह वापसी केवल एक मानवीय पहल नहीं, बल्कि सम्मान और आत्मसम्मान का विषय है। वर्षों से परिजन अपने प्रियजनों के अवशेष मांगते रहे हैं ताकि वे उनका अंतिम संस्कार धार्मिक रीति-रिवाजों से कर सकें।
नेतन्याहू सरकार पर दबाव
इस समझौते के साथ ही इजराइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की सरकार पर राजनीतिक दबाव भी बढ़ गया है। कई कट्टरपंथी गुट इस रिहाई को “कमजोरी” के रूप में देख रहे हैं, जबकि कई परिवार जिन्होंने अपने प्रियजनों को खोया है, इस समझौते को जरूरी मानवीय कदम बता रहे हैं।
इजराइल में विपक्ष ने सरकार से यह स्पष्टीकरण मांगा है कि इस तरह के सौदों से क्या कोई दीर्घकालीन समाधान निकलेगा या फिर यह केवल अस्थायी राहत है। वहीं, नेतन्याहू की सरकार ने कहा है कि इस समझौते का उद्देश्य “जान बचाना और मानवीय मूल्यों को कायम रखना” है।
अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रियाएं
इस समझौते को संयुक्त राष्ट्र, अमेरिका, यूरोपीय संघ और अन्य अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं ने सकारात्मक कदम बताया है। संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने कहा, “यह समझौता संघर्ष की आग में झुलसते दोनों पक्षों के लिए मानवीय दृष्टिकोण से एक जरूरी पहल है।”
अमेरिका ने भी इस समझौते की सराहना करते हुए उम्मीद जताई कि इससे भविष्य में स्थायी संघर्षविराम की राह तैयार हो सकती है।
आगे की राह
हालांकि यह समझौता एक राहत की खबर है, लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि क्या यह कदम दोनों पक्षों को स्थायी शांति की ओर ले जाएगा। गाजा पट्टी में स्थिति अभी भी तनावपूर्ण बनी हुई है, और दोनों पक्षों के बीच अविश्वास गहराया हुआ है। ऐसे में यह समझौता एक शुरुआत हो सकता है, लेकिन इसके बाद कई और कूटनीतिक और मानवीय कदम उठाने होंगे।