ईरान और इजरायल के बीच तनाव एक बार फिर अपने चरम पर है। ईरानी विदेश मंत्री हुसैन अमीर अब्दुल्लाहियान ने सख्त लहजे में चेतावनी दी है कि अगर इजरायल ने ईरान के किसी भी परमाणु प्रतिष्ठान को निशाना बनाया, तो ईरान तुरंत और निर्णायक जवाब देगा।
क्या कहा ईरान ने?
एक आधिकारिक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान, अब्दुल्लाहियान ने कहा,
“हमारे पास हर प्रकार के खतरों से निपटने की पूरी तैयारी है। यदि इजरायली सेना ने हमारे वैज्ञानिकों या परमाणु ठिकानों को निशाना बनाया, तो उसे इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ेगी।”
उन्होंने यह भी दोहराया कि ईरान की परमाणु गतिविधियां पूरी तरह शांतिपूर्ण हैं और IAEA (अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी) की निगरानी में चल रही हैं।
क्यों बढ़ा तनाव? – इजरायल-ईरान टकराव की जड़ें
हाल के हफ्तों में इजरायल और ईरान के बीच बढ़ता तनाव सिर्फ सीमा-पार हमलों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि यह रणनीतिक बयानबाज़ी और कूटनीतिक चेतावनियों के ज़रिए एक नए मोड़ पर पहुँच गया है। इजरायल लगातार इस बात पर ज़ोर देता रहा है कि ईरान अपने परमाणु कार्यक्रम की आड़ में गुप्त रूप से परमाणु हथियार विकसित कर रहा है — जो उसके अस्तित्व के लिए सीधा खतरा है। वहीं, ईरान इस आरोप को खारिज करते हुए दावा करता है कि उसका परमाणु कार्यक्रम पूरी तरह ऊर्जा उत्पादन और चिकित्सा उद्देश्यों के लिए है।
तनाव तब और गहरा हो गया जब गाज़ा, लेबनान और सीरिया से इजरायल पर रॉकेट हमले तेज़ हुए और इन हमलों के पीछे ईरान समर्थित गुटों का हाथ होने की आशंका जताई गई। इजरायल ने इसका जवाब सीमित सैन्य हमलों के ज़रिए दिया, जिससे हालात और बिगड़ते चले गए। इसके अलावा, इजरायली एजेंसियों द्वारा सीरिया और इराक में ईरानी सैन्य ठिकानों पर हवाई हमले, और ईरान द्वारा कथित रूप से इजरायल के राजनयिक ठिकानों पर साइबर और छद्म हमलों की कोशिशें भी सामने आई हैं।
विश्व की प्रतिक्रिया: कूटनीति की हलचल और चिंता की लहर
ईरान और इज़राइल के बीच संभावित युद्ध को लेकर वैश्विक मंच पर गहरी चिंता देखी जा रही है। अमेरिका, जो इज़राइल का परंपरागत सहयोगी है, इस स्थिति में कूटनीतिक समर्थन जरूर देगा लेकिन सीधे सैन्य हस्तक्षेप से बचने की कोशिश करेगा, क्योंकि वह पहले से ही यूक्रेन और एशिया में अपनी सैन्य रणनीतियों में उलझा हुआ है। चीन ने जहां सार्वजनिक रूप से संयम की अपील की है, वहीं वह ईरान के साथ अपने ऊर्जा और व्यापारिक संबंधों के जरिए परोक्ष रूप से उसका समर्थन करता दिखाई दे रहा है। रूस, जो ईरान के साथ सैन्य और तकनीकी साझेदारी बढ़ा चुका है, इस अवसर को पश्चिम के खिलाफ अपने राजनीतिक एजेंडे को आगे बढ़ाने में इस्तेमाल कर सकता है।
यूरोपीय संघ के देश, खासकर फ्रांस और जर्मनी, युद्ध के परिणामों से चिंतित हैं क्योंकि यह यूरोप की पहले से ही डांवाडोल अर्थव्यवस्था और ऊर्जा संकट को और गहरा कर सकता है। दूसरी ओर, खाड़ी देशों जैसे सऊदी अरब और यूएई, जो ईरान की बढ़ती क्षेत्रीय ताकत को लेकर पहले से ही सजग हैं, खुले तौर पर किसी पक्ष का समर्थन नहीं करेंगे लेकिन वे दोनों देशों से संयम बरतने की अपील कर सकते हैं। इस तनाव का असर फिलिस्तीन समर्थक मुस्लिम देशों में सड़कों पर विरोध प्रदर्शनों और इस्लामिक भावनाओं की उबाल के रूप में भी देखा जा सकता है।
संयुक्त राष्ट्र और अंतरराष्ट्रीय परमाणु एजेंसियां इस पूरे मसले पर आपात बैठकें बुला सकती हैं, जहां मानवीय संकट की चेतावनी दी जाएगी और शांति बहाली के प्रयास किए जाएंगे। हालांकि, इन संगठनों के पास सीमित हस्तक्षेप की क्षमता है। कुल मिलाकर, यदि यह संघर्ष बढ़ता है, तो यह न केवल मध्य-पूर्व को, बल्कि वैश्विक कूटनीति, ऊर्जा बाजारों और अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा व्यवस्था को भी गहरे संकट में डाल सकता है।
क्या युद्ध के आसार हैं?
पश्चिम एशिया की वर्तमान स्थिति बेहद संवेदनशील है। ईरान और इजरायल के बीच पिछले कई वर्षों से छाया युद्ध (Shadow War) जारी है — जिसमें साइबर हमले, वैज्ञानिकों की रहस्यमयी मौतें और हथियारों की तस्करी जैसी घटनाएं शामिल हैं। लेकिन हाल के बयानों और गतिविधियों को देखते हुए अब इस टकराव के खुले युद्ध में बदलने की आशंका बढ़ गई है।
- सीधी सैन्य टकराव की संभावना
ईरानी विदेश मंत्री का यह बयान कि “परमाणु ठिकानों पर हमला हुआ तो तुरंत जवाब देंगे” न केवल चेतावनी है, बल्कि यह आक्रामक रक्षा नीति का संकेत भी है।इजरायल पहले भी सीरिया, इराक और ईरान में संदिग्ध परमाणु ठिकानों पर हमले कर चुका है। अगर वह ऐसा कदम दोहराता है, तो ईरान की जवाबी कार्रवाई से सीमा-पार युद्ध छिड़ सकता है। - क्षेत्रीय अस्थिरता का प्रभाव
गाज़ा, सीरिया और लेबनान पहले से ही संघर्ष की चपेट में हैं। ईरान समर्थित हिज़बुल्लाह और हमास जैसे गुटों की मौजूदगी इजरायल के लिए बड़ी चुनौती है।अगर युद्ध हुआ, तो ये समूह इजरायल पर रॉकेट और ड्रोन हमलों की बारिश कर सकते हैं — जिससे युद्ध केवल दो देशों तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि पूरा क्षेत्र जल सकता है। - वैश्विक प्रतिक्रिया और हस्तक्षेप
अमेरिका, इजरायल का प्रमुख सहयोगी, पहले ही ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर सख्त रुख अपनाए हुए है।दूसरी ओर, चीन और रूस ईरान के रणनीतिक साझेदार हैं। युद्ध की स्थिति में ये देश राजनयिक या सैन्य समर्थन दे सकते हैं, जिससे संघर्ष वैश्विक स्तर पर तनाव का कारण बन सकता है। - आर्थिक और ऊर्जा संकट का खतरा
खाड़ी देशों से दुनिया का एक बड़ा हिस्सा तेल और गैस आयात करता है।अगर युद्ध हुआ तो तेल की कीमतों में उछाल, वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में संकट और महंगाई का सामना करना पड़ सकता है — जिसका असर भारत जैसे देशों पर भी होगा। - राजनीतिक फायदे का समीकरण
इजरायल और ईरान दोनों ही देशों में भीतरूनी राजनीतिक दबाव है। युद्ध या आक्रामक रवैया नेताओं के लिए राष्ट्रवाद की लहर पैदा कर सकता है।