प्रेरक कहानी : “मिट्टी का ढेला और पत्ता”

एक हरे-भरे खेत के कोने में एक मिट्टी का ढेला और एक हरा-भरा पत्ता साथ-साथ रहते थे। वे दोनों बहुत अच्छे दोस्त थे। खेत के शांत वातावरण में दोनों मिलकर समय बिताते, बातें करते, सूरज की गर्मी का आनंद लेते और कभी-कभी बारिश की फुहारों का स्वागत भी करते। ढेला अपने भारीपन और स्थिरता पर गर्व करता था, जबकि पत्ता अपनी हल्की फुर्ती और हरियाली पर नाज़ करता था।

एक दिन, आकाश में अचानक बादल घिर आए और तेज़ हवा चलने लगी। हवा के झोंकों से पेड़ों की टहनियाँ हिलने लगीं और ज़मीन पर पड़े पत्ते उड़ने लगे। तभी तेज़ हवा का एक झोंका आया और पत्ता उड़कर दूर खेत के दूसरे छोर पर गिर पड़ा।

मिट्टी का ढेला यह देखकर ज़ोर-ज़ोर से हँसने लगा। उसने चिढ़ाते हुए कहा, “तुम तो बड़े मज़बूत बनने की बात करते थे, लेकिन एक हवा के झोंके ने तुम्हें उड़ा दिया! अब बताओ, ताकत किसमें है – तुममें या मुझमें?”

पत्ता चुपचाप उसकी बात सुनता रहा। वह जानता था कि यह वक़्त जवाब देने का नहीं है।

कुछ दिनों बाद मौसम ने फिर करवट ली। इस बार आसमान में काले बादल छा गए और झमाझम बारिश शुरू हो गई। खेत में पानी भरने लगा, और जहाँ-तहाँ कीचड़ बन गई। पत्ता पास ही एक पत्थर के नीचे दबा पड़ा था, इसलिए बारिश से उसे कुछ खास फर्क नहीं पड़ा।

लेकिन मिट्टी का ढेला जो शान से खड़ा था, पानी में धीरे-धीरे घुलने लगा। उसका आकार बिगड़ गया, वह पहले जैसा ठोस नहीं रहा। थोड़ी ही देर में वह कीचड़ बनकर पानी के साथ बहने लगा।

अब पत्ते की बारी थी। वह मुस्कराया और बोला, “तुम कहते थे कि तुम मजबूत हो, लेकिन देखो, बारिश की कुछ बूँदों ने ही तुम्हें बहा दिया। अब बताओ, किसमें सच्ची ताकत है?”

ढेला कुछ नहीं कह पाया। वह समझ चुका था कि केवल स्थिरता ही सब कुछ नहीं होती, परिस्थितियों के अनुसार ढलना और टिके रहना भी एक गुण है।

बारिश थमने के बाद, दोनों फिर एक जगह मिले। अब उनके दिल में एक-दूसरे के लिए कोई घमंड या ईर्ष्या नहीं थी। दोनों ने एक-दूसरे से कहा, “हम दोनों में अलग-अलग गुण हैं। अकेले हम कमजोर हैं, लेकिन साथ रहें तो एक-दूसरे की ताकत बन सकते हैं।”

उन्होंने एक समझदारी भरा निर्णय लिया। पत्ते ने कहा, “अगली बार जब बारिश होगी, तो मैं तुम्हें अपनी छाया से ढँक दूँगा, ताकि तुम घुल न सको।”

ढेले ने भी मुस्कराते हुए कहा, “और जब अगली बार तेज़ हवा चलेगी, तो मैं तुम्हारे ऊपर बैठ जाऊँगा, ताकि तुम उड़ न सको।”

इसके बाद जब भी कोई कठिन मौसम आता, वे दोनों एक-दूसरे की रक्षा करते। उनकी दोस्ती और समझदारी के किस्से अब खेत के हर जीव-जंतु की जुबान पर थे।

सीख,
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हर किसी में कोई न कोई खासियत होती है। कोई स्थिर होता है, कोई लचीला। लेकिन जब हम अपने गुणों के साथ एक-दूसरे का सहारा बनते हैं, तभी सच्ची ताकत और सफलता मिलती है। हमें कभी भी किसी की कमजोरी पर हँसना नहीं चाहिए, बल्कि साथ मिलकर चलना चाहिए, तभी जीवन सुखद और संतुलित बनता है।

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