@छत्तीसगढ़ लोकदर्शन, विशेष टिप्पणी…

प्रधान संपादक सतीश शर्मा

छत्तीसगढ़ में तहसीलदारों के हड़ताल के बीच उनके प्रदेश समूह के व्हाट्सएप चैट में “नारियल के बदले प्रमोशन” का कथित चैट वायरल होने से सरकार में हड़कंप मच गया है। सरकार सांप छछुंदर की स्थिति में घिर चुकी है। न विभागीय मंत्री और अधिकारियों पर लगाम कश पा रही है और नही कारवाई कर पा रही हैं। उलगे तो ही सरकार की किरकिरी है और गटक जाए तो भी मुश्किल की स्थिति है। एक सौम्य व्यक्तित्व और आदिवासी तबके का मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के सुशासन का दावा सवालों में घिरते दिख रही हैं।


जहां एक ओर उनके ही मंत्री इतने बेलगाम हो चुके हैं कि न विभागीय कसावट है और न ही किसी जिम्मेदारी का एहसास है।
राजस्व निरीक्षक के परीक्षा में अनियमितता, भू माफियाओं के बढ़ते दखल, पटवारी की आत्महत्या, भारतमाला परियोजना में गड़बड़ी जैसा लाखों सवालों से घिरे राजस्व विभाग और उनके मंत्री टंकराम वर्मा जी, इतने बेसुध कैसे हो सकते हैं? 


छत्तीसगढ़िया होने का अच्छा अभिनीत कलाकार माने जाने वाले माननीय मंत्री जी क्या किसानों की पीड़ा से अनभिज्ञ हैं.? या आत्ममुग्ध हो चुके हैं..? छत्तीसगढ़ के किसानों को अपने ही जमीन के नामांतरण, विक्रय के लिए परेशान होना पड़ता है, इतना ही नहीं, किसानों को आत्महत्या करना पड़ता है। भारतमाला परियोजना में करोड़ों का घोटाला कर सत्तासीन लोगों के करीबियों को फायदा पंहुचाया जाता है और तहसीलदार, एसडीएम या पटवारी को दोषी बना दिया जाता है क्या इतना बड़ा खेल बिना विभागीय और सत्तासीन लोगों के बगैर संरक्षण के संभव है.?

कहां चढ़ा नारियल… किसको किसको मिला प्रसाद..?

प्रथम दृष्टया तो यह दुर्भाग्यजनक हैं कि हिंदुत्व और सनातनी छवि के साथ स्थापित भाजपा सरकार ने भ्रष्टाचार के लिए “नारियल और प्रसाद” जैसे आस्था और सम्मानजनक शब्दों का इस्तेमाल किया।
“रिश्वत इनके लिए चढ़ावा है, पैसों का बटवारा.. प्रसाद वितरण है, माननीयों तक पहुंचने वाली बड़ी और अनिवार्य औपचारिकता नारियल है जिसके बिना ‘प्रमोशनरूपी कृपा’ अटकी हुई है।”
तहसीलदारों का यह “50–50” नामक ग्रुप निश्चित अपना एक सामूहिक ग्रुप है जहां उनकी अपनी नीति निर्धारण और सुविधाओं असुविधाओं का संवाद होता है। इस बीच विभाग में समय पर नारियल नहीं चढ़ने से प्रमोशन रुकने और दो साल जूनियर रह जाने वाले चैट ने विष्णु का सुशासन कितना कारगर है.. परिभाषित कर दिया है। सवाल यह है कि प्रमोशन के लिए कितने किलो का प्रसाद चढ़ाया.. ,नारियल का भाव क्या रहा और प्रसाद कहां कहां बंटे..? क्या राजस्व विभाग के स्थानांतरण और प्रमोशन सूची नारियल चढ़ावे से तय होती है..?

बड़ा सवाल है..?

क्या..पिछले माह 40 नायब तहसीलदारों की प्रमोशन सूची जारी हुई, उसमे भी नारियल का भेंट लिया गया.. अगर लिया गया तो कितने किलो का प्रसाद कहां कहां बांटा गया..?

विभागीय नियमों को ताक में रखकर एक ही जिले में 7 नायब तहसीलदारों को पुनः उसी जिले में तहसीलदार प्रमोट किया गया क्या यहां भी चढ़ावा चला..?
जबकि नियमों में स्पष्ट है कि किसी जिले में नियुक्त नायब तहसीलदार को तहसीलदार प्रमोट करने पर अन्य जिला में नियुक्ति होता है, तो..?
किस आधार पर नियम को ताक में रखा गया..?
क्या संबधित अधिकारियों ने नियमावली नहीं देखी या सत्तासीन महारथियों के दबाव में काम किया या यहां भी नारियल चढ़ाया गया..?

कुछेक मंत्रियों के “लाल कारनामे” के कारण सरकार अपने ही मांद में फंसते दिखाई दे रही है, विपक्षियों ने हमला भी तेज कर दिया है। देखना कारगर होगा कि क्या सरकार एक्शन मोड में आएगी? कुछ सर्जरी होगी या अभी तक के परंपरागत रूप से कुछ नेताओं पर यूं ही सरपरस्त होकर अपनी बदनामी झेलते रहेगी।

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