@छत्तीसगढ़ लोकदर्शन, भिलाई। छत्तीसगढ़ के सबसे लोकप्रिय पर्यटन स्थलों में से एक, भिलाई के मैत्रीबाग में इन दिनों बीएसपी प्रबंधन की भारी लापरवाही का खामियाजा पर्यटक भुगत रहे हैं। भीषण गर्मी के बीच, चिड़ियाघर के अंदर संचालित एकमात्र कैंटीन पर फिर से ताला लटका दिया गया है, जिससे देश-विदेश से आने वाले पर्यटक, खासकर छोटे बच्चों के साथ पहुंचे परिवार, चाय, पानी और नाश्ते के लिए तरस रहे हैं।

टिकट खरीदकर अंदर प्रवेश करने के बाद जब पर्यटकों को पता चलता है कि यहाँ खाने-पीने का कोई साधन नहीं है, तो उनकी सारी खुशी निराशा में बदल जाती है।

प्रबंधन की सुस्ती का खामियाजा भुगत रहे पर्यटक

कैंटीन के बंद होने के पीछे की वजह बीएसपी (भिलाई इस्पात संयंत्र) के नगर सेवाएं विभाग और टेंडर सेल की प्रशासनिक सुस्ती बताई जा रही है। जानकारी के अनुसार, कैंटीन के संचालन के लिए निविदा (Tender) प्रक्रिया को समय पर पूरा नहीं किया गया। यह बेहद चौंकाने वाला है कि महीने भर बंद रहने के बाद कैंटीन को कुछ दिनों पहले ही खोला गया था और सप्ताह भर के भीतर ही उसे फिर से बंद कर दिया गया
इस लापरवाही से न केवल बीएसपी को राजस्व का नुकसान हो रहा है, बल्कि मैत्रीबाग की छवि पर भी बुरा असर पड़ रहा है। प्रबंधन को कैंटीन बंद करने से पहले पर्यटकों के लिए ठंडे पानी या अन्य वैकल्पिक व्यवस्था करनी चाहिए थी, जो नहीं की गई।

12 लाख पर्यटक और एक भी कैंटीन नहीं

मैत्रीबाग सिर्फ एक स्थानीय पार्क नहीं, बल्कि एक राष्ट्रीय स्तर का पर्यटन केंद्र है।

आगंतुकों की संख्या:

यहां हर साल लगभग 12 लाख पर्यटक आते हैं।

 प्रमुख राज्य: इनमें महाराष्ट्र, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश और बिहार के पर्यटकों की बड़ी संख्या होती है।
इतनी बड़ी संख्या में पर्यटकों की मेजबानी करने वाले चिड़ियाघर में एक भी चालू कैंटीन का न होना, प्रबंधन की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े करता है।

एक तरफ जानवरों का ख्याल, दूसरी तरफ इंसानों की अनदेखी
यह विडंबना है कि जहाँ एक ओर मैत्रीबाग प्रबंधन अपने 340 वन्यप्राणियों का भीषण गर्मी में पूरा ख्याल रख रहा है, वहीं दूसरी ओर इंसानों की अनदेखी की जा रही है।

जानवरों के लिए इंतजाम:

जानवरों के बाड़ों में गर्मी से बचाने के लिए टायफा मैट, स्प्रिंकलर, ग्रीन नेट और कृत्रिम झरने जैसी बेहतरीन व्यवस्थाएं की गई हैं।

नए मेहमानों की तैयारी: जल्द ही यहां तेंदुए और भालू के नए जोड़े लाए जाने हैं, जिनके लिए केंद्रीय ज़ू प्राधिकरण के मानकों के अनुसार विशेष बाड़े तैयार किए गए हैं।

एक तरफ जानवरों के प्रति यह संवेदनशीलता सराहनीय है, लेकिन दूसरी तरफ उन पर्यटकों की बुनियादी जरूरतों को नजरअंदाज करना बेहद निराशाजनक है, जिनके टिकट से ही प्रबंधन को राजस्व मिलता है। सवाल यह है कि बीएसपी प्रबंधन कब जागेगा और पर्यटकों की इस समस्या का स्थायी समाधान कब करेगा?

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