ठाकरे बंधुओं Thakre Brothersके फिर एक साथ आने की संभावना आज भी कमज़ोर जरूर है, लेकिन राजनीतिक हालात कब पलट जाएं, कहना मुश्किल है। महाराष्ट्र की राजनीति में जातीय, भाषाई और विचारधारात्मक संतुलन अब भी बहुत मायने रखता है। यदि व्यक्तिगत अहं और राजनीतिक समीकरणों से ऊपर उठकर दोनों बंधु साथ आते हैं, तो यह राज्य के राजनीति में बड़ी करवट साबित हो सकती है।
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महाराष्ट्र की राजनीति हमेशा से जटिल रही है, लेकिन 2022 में शिवसेना में विभाजन के बाद इसकी दिशा ने नया मोड़ लिया। उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे के बीच सत्ता संघर्ष और उसके बाद शिवसेना का विभाजन, राज्य की राजनीति के समीकरण बदल चुका है। वहीं, राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) भी हाल के वर्षों में अपेक्षाकृत शांत रही है, परंतु उनकी भूमिका एक बार फिर चर्चा में है। ऐसे में सवाल उठता है: क्या ठाकरे बंधु Thakre Brothers– उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे – फिर एक साथ आ सकते हैं? और अगर ऐसा होता है, तो महाराष्ट्र की राजनीति पर इसका क्या असर होगा?
ठाकरे बंधुओं का इतिहास
राज ठाकरे, बाला साहेब ठाकरे के भतीजे हैं और उद्धव ठाकरे के चचेरे भाई। कभी शिवसेना में उभरते हुए नेता माने जाने वाले राज को 2006 में पार्टी छोड़नी पड़ी, जब बाला साहेब ने उद्धव को पार्टी का उत्तराधिकारी चुना। इसके बाद राज ने MNS की स्थापना की। शुरू में उनकी पार्टी को मुंबई और शहरी क्षेत्रों में समर्थन मिला, लेकिन धीरे-धीरे उसका प्रभाव कम होता गया।
वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य को बिंदुवार समझते हैं-
उद्धव ठाकरे की स्थिति:
- महाविकास आघाड़ी (MVA) गठबंधन में कांग्रेस और NCP (शरद पवार गुट) के साथ हैं।
- एकनाथ शिंदे गुट के साथ लड़ाई अब न्यायिक और राजनीतिक दोनों मोर्चों पर जारी है।
- उनकी छवि एक संयमित और प्रशासनिक नेतृत्वकर्ता की बन रही है।
राज ठाकरे की स्थिति:
- हाल के महीनों में उन्होंने राम मंदिर मुद्दे, अवैध मस्जिद लाउडस्पीकर और हिंदुत्व एजेंडे पर बयान दिए हैं।
- उनकी भाजपा के प्रति नरम नीति रही है, जिससे MNS को भाजपा का ‘बी टीम’ कहा गया।
- लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव में उनकी राजनीतिक प्रासंगिकता कम दिखी।
क्या फिर साथ आ सकते हैं ठाकरे बंधु?
इस संभावना को पूरी तरह नकारा नहीं जा सकता, विशेषकर यदि हालात इस तरह के बनते हें –
- सांस्कृतिक एकता: दोनों का आधार ‘मराठी मानुष’ और हिंदुत्व रहा है। साझा वैचारिक धरातल अब भी मौजूद है।
- राजनीतिक मजबूरी: यदि MNS का जनाधार और समर्थन कम होता है और उद्धव को शिंदे-भाजपा गठबंधन से निपटने के लिए अतिरिक्त सहयोगियों की ज़रूरत महसूस होती है, तो यह समीकरण बदल सकता है।
- भाजपा से दूरी: अगर भाजपा राज ठाकरे को पर्याप्त महत्व नहीं देती, तो वे उद्धव के साथ आने के लिए तैयार हो सकते हैा
- जनता का दबाव: अगर मराठी समुदाय को लगता है कि शिवसेना का विभाजन उनके हितों को नुकसान पहुँचा रहा है, तो जनता स्वयं एकता की मांग कर सकती है।
संभावित राजनीतिक प्रभाव
(a) अगर एकता होती है तो:
- मराठी वोटों का ध्रुवीकरण MVA के पक्ष में हो सकता है।
- मुंबई और ठाणे में शिवसेना को बड़ा फायदा मिल सकता है।
- भाजपा-शिंदे गठबंधन को गंभीर चुनौती मिलेगी।
- कांग्रेस और NCP भी इस एकता को रणनीतिक रूप से समर्थन देंगे।
(b) अगर एकता नहीं होती:
- उद्धव और राज दोनों का अलग-अलग राजनीतिक भविष्य अनिश्चित बना रहेगा।
- भाजपा अपनी ‘Hindutva + विकास’ रणनीति से बढ़त बनाए रखेगी।
- 2024-25 में विधान सभा चुनाव में शिंदे गुट निर्णायक भूमिका में बना रह सकता है।