@छत्तीसगढ़ लोकदर्शन, रायपुर। छत्तीसगढ़ में एक ऐसे सनसनीखेज घोटाले का खुलासा हुआ है, जिसने पूरे प्रदेश को हिलाकर रख दिया है। एक फर्जी NGO और अस्पताल के नाम पर सरकारी खजाने को 1000 करोड़ रुपये से अधिक की चपत लगाने का आरोप लगा है। इस मामले में प्रदेश के कई वरिष्ठ IAS और राज्य सेवा के अधिकारियों के नाम शामिल हैं। बुधवार को इस मामले में हाईकोर्ट में सुनवाई पूरी हो गई है और कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है।

क्या है 1000 करोड़ का यह महाघोटाला?

यह पूरा घोटाला एक ऐसे संस्थान के नाम पर किया गया जो असल में कभी था ही नहीं।

कागजों पर बना संस्थान: ‘राज्य स्त्रोत निःशक्त जन संस्थान’ नाम की एक संस्था सिर्फ कागजों पर बनाई गई।

फर्जीवाड़ा: इस फर्जी संस्थान के नाम पर करोड़ों की मशीनें खरीदने और उनके रखरखाव पर भारी-भरकम खर्च दिखाया गया।

पैसे की हेराफेरी: बैंक ऑफ इंडिया और SBI में फर्जी आधार कार्ड का उपयोग करके कर्मचारियों के नाम पर खाते खोले गए और सरकारी पैसा इन्हीं खातों के जरिए निकाला गया।

समय-सीमा: यह संगठित घोटाला 2004 से 2018 के बीच, यानी एक दशक से भी अधिक समय तक चलता रहा।

कैसे हुआ इस संगठित अपराध का खुलासा?

इस घोटाले का पर्दाफाश एक आम नागरिक की सतर्कता से हुआ। रायपुर निवासी कुंदन सिंह ठाकुर ने एक जनहित याचिका दायर की थी। उन्हें जानकारी मिली कि उन्हें एक ऐसे सरकारी अस्पताल का कर्मचारी बताकर वेतन दिया जा रहा है, जहां वे काम ही नहीं करते। जब उन्होंने RTI के जरिए जानकारी मांगी, तो इस पूरे फर्जीवाड़े का खेल परत-दर-परत खुलता चला गया।

किन बड़े अधिकारियों पर हैं आरोप?

इस मामले की गंभीरता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इसमें प्रदेश के शीर्ष नौकरशाहों के नाम शामिल हैं। जिन पर आरोप लगे हैं उनमें प्रमुख हैं:

IAS अधिकारी: आलोक शुक्ला, विवेक ढांड, एमके राउत, सुनील कुजूर, बीएल अग्रवाल, और पीपी सोती।

राज्य सेवा के अधिकारी: सतीश पांडेय, राजेश तिवारी, अशोक तिवारी, हरमन खलखो, एमएल पांडेय, और पंकज वर्मा।

CBI जांच और कोर्ट का रुख

मामले की सुनवाई के दौरान तत्कालीन मुख्य सचिव ने खुद कोर्ट में 150-200 करोड़ की गड़बड़ी की बात स्वीकार की थी। इस पर हाईकोर्ट ने बेहद सख्त टिप्पणी करते हुए कहा था, “जिसे आप गलती बता रहे हैं, वह एक संगठित और सुनियोजित अपराध है।”

CBI जांच का आदेश: हाईकोर्ट ने मामले की गंभीरता को देखते हुए CBI जांच के निर्देश दिए थे।

सुप्रीम कोर्ट से रोक: आरोपी अधिकारी इस आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट चले गए, जहां से CBI जांच पर रोक लग गई।

हाईकोर्ट में वापसी: सुप्रीम कोर्ट ने मामले को वापस सुनवाई के लिए छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट भेज दिया था, जहां अब बहस पूरी हो चुकी है और फैसले का इंतजार है।

अब सभी की निगाहें हाईकोर्ट के फैसले पर टिकी हैं, जिससे यह तय होगा कि प्रदेश के इस सबसे बड़े घोटाले के आरोपियों का भविष्य क्या होगा।

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