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RAIPUR. ऑपरेशन ब्लैक फॉरेस्ट (OPERATION BLACK FOREST) छत्तीसगढ़-तेलंगाना सीमा पर कर्रेगुट्टालु पहाड़ी (KGH) के आसपास 21 अप्रैल से 11 मई 2025 तक चला नक्सल-विरोधी अभियान था, जिसे सुरक्षा बलों ने “ऑपरेशन ब्लैक फॉरेस्ट” नाम दिया। यह भारत के अब तक के सबसे बड़े और सबसे प्रभावी नक्सल-विरोधी अभियानों में से एक माना जा रहा है, जिसने नक्सलियों की रीढ़ को तोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस ऑपरेशन में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (CRPF), कोबरा (Commando Battalion for Resolute Action), और छत्तीसगढ़ पुलिस की संयुक्त टीमें शामिल थीं।
ऑपरेशन की पृष्ठभूमि
कर्रेगुट्टालु पहाड़ी नक्सलियों (Naxalites) का एकीकृत मुख्यालय (Unified Headqurter) थी, जहां पीपुल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी (PLGA), दंडकारण्य विशेष क्षेत्र समिति (DKSZSC),तेलंगाना राज्य समिति (TSC), और सेंट्रल रीजनल कमांड (CRC) जैसे संगठनों का प्रशिक्षण और हथियार निर्माण होता था। इस क्षेत्र में लगभग 300-350 सशस्त्र नक्सली सक्रिय थे, जो घने जंगलों और दुर्गम पहाड़ियों का लाभ उठाकर सुरक्षा बलों पर हमले करते थे। केंद्र सरकार ने 31 मार्च 2026 तक नक्सलवाद को पूरी तरह समाप्त करने का संकल्प लिया था, और यह ऑपरेशन इसी दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था।
उद्देश्य
- नक्सलियों के प्रमुख ठिकानों को नष्ट करना।
- उनके हथियार निर्माण और प्रशिक्षण केंद्रों को समाप्त करना।
- क्षेत्र में शांति और कानून व्यवस्था स्थापित करना।
- नक्सलियों के मनोबल को तोड़कर उन्हें आत्मसमर्पण के लिए मजबूर करना।
ऑपरेशन की प्रमुख उपलब्धियाँ
नक्सलियों का सफाया
- 21 मुठभेड़ों में 31 नक्सलियों को मार गिराया गया, जिनमें 16 महिला नक्सली शामिल थीं। इनमें कई शीर्ष नक्सली नेता शामिल थे, जैसे झारखंड के बोकारो में केंद्रीय कमेटी के नेता “कामरेड विवेक”।
- नक्सलियों की चार तकनीकी इकाइयाँ, जो घातक हथियार और IED (Improvised Explosive Devices) बनाने में इस्तेमाल होती थीं, पूरी तरह नष्ट कर दी गई।
818 नग बीजीएल शेल समेत ये हथियार बरामद
इनमें नक्सलियों के पास से इंसास, बीजीएल, मेगा स्नाइपर, एसएलआर जैसे घातक हथियारों का बड़ा जखीरा भी मिला। इन ठिकानों व बंकरों में तलाशी के दौरान कुल 450 नग आईईडी, 818 नग बीजीएल शेल, 899 बंडल कार्डेक्स, डेटोनेटर व भारी मात्रा में विस्फोटक सामग्री बरामद हुई। इसके साथ ही जवानों ने नक्सलियों की 4 तकनीकी इकाइयों को भी नष्ट किया है, जिनका उपयोग बीजीएल शेल, देसी हथियार, आईईडी और अन्य हथियारों के निर्माण के लिए किया जा रहा था। इन तकनीकी इकाइयों से 4 लेथ मशीनें भी बरामद कर नष्ट की गई हैं।
नक्सली गढ़ पर कब्जा
- कर्रेगुट्टालु पहाड़ी, जो नक्सलियों का प्रमुख गढ़ थी, को पूरी तरह सुरक्षा बलों के नियंत्रण में ले लिया गया। इस क्षेत्र की नाकेबंदी कर नक्सलियों को चारों ओर से घेरा गया, जिससे उनके भागने के रास्ते बंद हो गए।
नक्सलियों का टूटा मनोबल
- ऑपरेशन की सफलता के बाद नक्सलियों ने युद्धविराम और शांति वार्ता की गुहार लगाई। उनकी केंद्रीय कमेटी ने केंद्र और राज्य सरकारों के नाम पर्चे जारी किए, जिसमें बिना शर्त युद्धविराम और बातचीत की मांग की गई।
- नक्सलियों ने स्वीकार किया कि उनके PLGA बलों ने हथियार डाल दिए हैं, और वे अब संवैधानिक अधिकारों की बात कर रहे हैं, जो पहले बंदूक के बल पर सत्ता हासिल करने का दावा करते थे।
क्षेत्रीय प्रभाव
छत्तीसगढ़, तेलंगाना, महाराष्ट्र, ओडिशा, झारखंड, और मध्य प्रदेश में नक्सलियों पर सुरक्षा बलों का अभूतपूर्व दबदबा बना हुआ है। इस ऑपरेशन ने न केवल छत्तीसगढ़-तेलंगाना सीमा को सुरक्षित किया, बल्कि अन्य नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में भी सुरक्षा बलों का आत्मविश्वास बढ़ाया।
ऑपरेशन की चुनौतियाँ
भौगोलिक कठिनाइयाँ : 1200 वर्ग किलोमीटर के दुर्गम जंगली और पहाड़ी क्षेत्र में ऑपरेशन चलाना बेहद चुनौतीपूर्ण था। ऊँची पहाड़ियाँ, घने जंगल, और उच्च तापमान ने जवानों के लिए परिस्थितियाँ कठिन बना दीं।
जवानों की चोटें: कई जवान इस ऑपरेशन के दौरान घायल हुए, लेकिन सभी सुरक्षा बल सुरक्षित बताए गए हैं।
नक्सलियों का प्रतिरोध : नक्सलियों ने शुरू में घातक हमलों और IED का उपयोग कर जवानों को निशाना बनाने की कोशिश की, लेकिन सुरक्षा बलों की रणनीति और समन्वय ने उन्हें नाकाम कर दिया।
नेतृत्व और रणनीति
केंद्रीय गृह मंत्री का मार्गदर्शन: अमित शाह ने नक्सलवाद के खिलाफ जीरो टॉलरेंस नीति को लागू करने पर जोर दिया। उनके नेतृत्व में सुरक्षा बलों को स्पष्ट निर्देश दिए गए थे कि नक्सलवाद को जड़ से उखाड़ फेंकना है।
CRPF और कोबरा की भूमिका : CRPF के महानिदेशक ज्ञानेंद्र प्रताप सिंह ने ऑपरेशन की सफलता को जवानों की बहादुरी और समन्वय का परिणाम बताया। कोबरा की विशेष कमांडो इकाइयों ने जंगल युद्ध में अपनी विशेषज्ञता का प्रदर्शन किया।
छत्तीसगढ़ पुलिस का योगदान : छत्तीसगढ़ के उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा ने इस ऑपरेशन को “बहुत मुश्किल” बताते हुए स्थानीय पुलिस की सक्रिय भागीदारी की सराहना की।
राजनीतिक और सामाजिक प्रभाव
नक्सलियों की कमजोरी : ऑपरेशन ने नक्सलियों के संगठन को बिखेर दिया है। उनके शीर्ष नेताओं के मारे जाने और ठिकानों के नष्ट होने से उनकी भर्ती और वसूली की क्षमता कमजोर हुई है।
शांति की संभावना : नक्सलियों की शांति वार्ता की मांग ने क्षेत्र में स्थायी शांति की संभावनाओं को बढ़ाया है। सरकार अब सामाजिक-आर्थिक विकास पर ध्यान केंद्रित कर सकती है।
विपक्ष का रुख: : तेलंगाना में कांग्रेस और भारत राष्ट्र समिति (BRS) ने ऑपरेशन के सैन्यीकरण की आलोचना की, लेकिन साथ ही नक्सलवाद के उन्मूलन का समर्थन भी किया। कांग्रेस ने सामाजिक-आर्थिक समस्याओं के समाधान पर जोर दिया।
आलोचना और विवाद
नक्सलियों ने दावा किया कि ऑपरेशन के दौरान सैकड़ों नक्सलियों और निर्दोष वनवासियों की हत्याएँ हुईं, लेकिन सुरक्षा बलों ने इन दावों को खारिज करते हुए कहा कि ऑपरेशन लक्षित और सटीक था। कुछ मानवाधिकार संगठनों ने ऑपरेशन की कथित “अति सैन्यीकरण” की आलोचना की, लेकिन सरकार ने इसे राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए आवश्यक बताया।
भविष्य की दिशा
नक्सल मुक्त भारत : केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 31 मार्च 2026 तक नक्सलवाद को समाप्त करने का लक्ष्य रखा है। ऑपरेशन ब्लैक फॉरेस्ट इस दिशा में एक मील का पत्थर साबित हुआ है
विकास योजनाएँ: सरकार अब नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में शिक्षा, स्वास्थ्य, और बुनियादी ढांचे के विकास पर ध्यान दे रही है ताकि स्थानीय आबादी को मुख्यधारा में शामिल किया जा सके।
आत्मसमर्पण नीति: ऑपरेशन की सफलता के बाद कई नक्सली आत्मसमर्पण के लिए प्रेरित हो सकते हैं, जिसके लिए सरकार ने पहले से ही पुनर्वास योजनाएँ लागू की हैं।
पायनियर व्यू
ऑपरेशन ब्लैक फॉरेस्ट नक्सलवाद के खिलाफ भारत की सबसे बड़ी और सबसे प्रभावी कार्रवाइयों में से एक है। इसने न केवल नक्सलियों की सैन्य ताकत को कमजोर किया, बल्कि उनके मनोबल को भी तोड़ा। सुरक्षा बलों की बहादुरी, रणनीतिक योजना, और केंद्र सरकार के दृढ़ संकल्प ने इस ऑपरेशन को ऐतिहासिक बनाया। यह ऑपरेशन नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में शांति और विकास की नींव रखने में महत्वपूर्ण साबित होगा।