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मानव अधिकारियों की उडी धज्जियां, पर्यावरण को भी पहुंचाया जबरदस्त नुकसान
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रूस-यूक्रेन युद्ध में हताहतों की संख्या 10 लाख से अधिक, जिसमें मारे गए और घायल दोनों शामिल हैं।
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इज़राइल-फिलिस्तीन युद्ध में फिलिस्तीनियों के हताहत लगभग 1.65 लाख और इज़राइली हताहत 1,706 मारे गए के साथ, घायलों की संख्या अनिश्चित है।
करोना की महात्रासदी के बाद पिछले तीन वर्षों में विश्व आज दो भयावह युद्धों—रूस-यूक्रेन और इज़राइल-फिलिस्तीन Russia–Ukraine and Israel–Palestine War—के चक्रव्यूह में फंसा हुआ है, जिन्होंने मानवता को गहरे घाव दिए हैं। इन युद्धों ने न केवल लाखों लोगों की जान ली है, बल्कि पर्यावरण को अपूरणीय क्षति, आर्थिक संकट और मानवाधिकारों का हनन भी किया है। रूस-यूक्रेन युद्ध में अनुमानित 10 लाख हताहत और पर्यावरणीय विनाश की कीमत अरबों डॉलर में है, तो इज़राइल-फिलिस्तीन संघर्ष में 1.65 लाख से अधिक फिलिस्तीनी और 7,000 से अधिक इज़राइली हताहतों के साथ मानवाधिकारों के तमाम पैमाने ध्वस्त हो चुके हैं।
रूसी लेखक लियो टॉल्स्टॉय ने ठीक ही कहा था, “युद्ध केवल विनाश का नाम है। यह शक्ति का नहीं, बल्कि बर्बादी का प्रतीक है।” यह कथन आज के इन युद्धों की विभीषिका को चरितार्थ करता है, जहां सत्ता और शक्ति की होड़ में मानवता, पर्यावरण और नैतिकता का बलिदान हो रहा है। यह आलेख इन युद्धों के हताहतों, पर्यावरणीय और आर्थिक नुकसान, और मानवाधिकारों के उल्लंघन की गहरी पड़ताल करता है, ताकि हम इस बर्बादी के वास्तविक स्वरूप को समझ सकें और शांति की दिशा में कदम उठाने की प्रेरणा पा सकें।
वर्ग रूस-यूक्रेन युद्ध इज़राइल-फिलिस्तीन युद्ध कुल हताहत लगभग 10 लाख (मारे गए और घायल) फिलिस्तीनी: लगभग 164,793; इज़राइली: 1,706 मारे गए + घायल अज्ञात मारे गए रूस: 840,980; यूक्रेन: 43,000; नागरिक: 12,162 फिलिस्तीनी: 54,528; इज़राइली: 1,706 घायल शामिल (कुल हताहत में) फिलिस्तीनी: 110,265; इज़राइली: 5,431 (नवंबर 2023 तक) नागरिक हताहत 12,162 (यूक्रेन) फिलिस्तीनी: 80% नागरिक; इज़राइली: 815 (7 अक्टूबर के हमलों में) इज़राइल-हमास संघर्ष: अब तक का नुकसान
इज़राइल-हमास संघर्ष, जो 7 अक्टूबर 2023 से शुरू हुआ, गाजा पट्टी में भारी तबाही ला चुका है। नवीनतम रिपोर्ट्स के अनुसार, मई 2025 तक, गाजा में 52,000 से अधिक फिलिस्तीनियों की मौत हो चुकी है, और दो-तिहाई से अधिक इमारतें क्षतिग्रस्त या नष्ट हो चुकी हैं । मानवीय संकट गंभीर है, जहां 2.3 मिलियन आबादी में से अधिकांश विस्थापित हैं, और उन्हें भोजन, पानी और चिकित्सा सुविधाओं की कमी का सामना करना पड़ रहा है । इस संघर्ष ने क्षेत्र में अस्थिरता बढ़ाई है, और अंतरराष्ट्रीय समुदाय बार-बार मानवीय युद्धविराम की मांग कर रहा है, हालांकि सफलता सीमित रही है।
रूस-यूक्रेन युद्ध: अब तक का नुकसान
रूस-यूक्रेन युद्ध, जो फरवरी 2022 से चल रहा है, ने यूक्रेन के बुनियादी ढांचे और पर्यावरण को गंभीर नुकसान पहुंचाया है। दिसंबर 2023 तक, यूक्रेन के बुनियादी ढांचे को अरबों डॉलर का नुकसान हुआ था, जिसमें आवास, परिवहन, व्यावसायिक और औद्योगिक क्षेत्र सबसे अधिक प्रभावित हुए । पर्यावरणीय क्षति भी व्यापक है, जिसमें विस्फोटकों से मिट्टी और पानी का दूषित होना, अनियंत्रित वनाग्नि, और ज़ापोरिज़िहिया परमाणु संयंत्र जैसे महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे को नुकसान शामिल है । आर्थिक स्तर पर, यह युद्ध वैश्विक आर्थिक वृद्धि को धीमा कर रहा है और यूक्रेन के कृषि और खनन उद्योग को प्रभावित कर रहा है ।
भविष्य का अनुमानित नुकसान: चुनौतियाँ और संभावनाएँ
भविष्य के नुकसान का अनुमान लगाना कठिन है, क्योंकि यह दोनों युद्धों की अवधि, तीव्रता, और अंतरराष्ट्रीय हस्तक्षेप पर निर्भर करता है। इज़राइल-हमास संघर्ष के मामले में, यदि युद्ध जारी रहता है, तो और अधिक जानमाल का नुकसान और बुनियादी ढांचे का विनाश होने की संभावना है, जिससे मानवीय संकट और गहरा सकता है । रूस-यूक्रेन युद्ध के लिए, शोध से संकेत मिलता है कि दीर्घकालिक पर्यावरणीय प्रभाव, जैसे दूषित मिट्टी और पानी, और आर्थिक पुनर्निर्माण की चुनौतियाँ, एक बड़ी चिंता का विषय हैं ।
तुलनात्मक विश्लेषण:
दो युद्धों से अब तक हुए नुकसान और भविष्य के अनुमानित नुकसान का संक्षिप्त अवलोकन प्रस्तुत है:
वर्ग इज़राइल-हमास युद्ध रूस-यूक्रेन युद्ध मानवीय नुकसान मई 2025 तक 52,000+ मौतें, अधिकांश विस्थापित स 10 लाख से अधिक नागरिक और उच्च सैन्य हताहत बुनियादी ढांचे का नुकसान गाजा में 2/3 से अधिक इमारतें क्षतिग्रस्त अरबों डॉलर का नुकसान, आवास और परिवहन प्रभावित पर्यावरणीय प्रभाव सीमित, मुख्यतः शहरी क्षेत्रों में व्यापक, मिट्टी/पानी दूषित, वनाग्नि आर्थिक प्रभाव क्षेत्रीय, मानवीय सहायता पर ध्यान वैश्विक, यूक्रेन की अर्थव्यवस्था पर गंभीर असर भविष्य का अनुमान और नुकसान संभावित, मानवीय संकट गहरा सकता है दीर्घकालिक पर्यावरणीय और आर्थिक चुनौतियाँ