@छत्तीसगढ़ लोकदर्शन, विशेष टिप्पणी : प्रधान संपादक सतीश शर्मा
छत्तीसगढ़ प्रदेश भारतीय जनता पार्टी द्वारा गत दिनों भाजपा की सदस्यता अभियान में अपनी श्रेष्ठता दिखाने वाले सदस्यता प्रभारियों और विधायकों का सम्मान किया गया। जिसमे प्रदेश के विभिन्न विधायकों को इस अवदान के लिए सम्मानित किया गया, इस दौरान प्रदेश में सबसे अधिक सदस्यता रिकार्ड बनाने पूर्व कैबिनेट मंत्री एवं वर्तमान कुरुद विधायक अजय चंद्राकर का भी सम्मान किया गया। प्रतीक चिह्न शाल आदि से विधायकों का सम्मान किया जा रहा था इसी बीच विधायक अजय चंद्राकर को सम्मान के लिए बुलाया गया मंच पर भाजपा प्रदेश अध्यक्ष किरण सिंह देव एवं सत्ता और संगठन के वरिष्ठ वरेण्यों की मौजूदगी में उनका सम्मान हुआ। विधायक अजय चंद्राकर ने यह सम्मान उतने ही सम्मान से लौटाया जिस सम्मान के साथ उनका सम्मान किया गया। प्रदेश स्तर का यह सम्मान मंचीय औपचारिकता रही, अजय द्वारा सम्मान लौटा देना रिश्ते की औपचारिकता रही।
अजय चंद्राकर ने अपने सदस्यता रिकार्ड का श्रेय स्वयं न लेकर पार्टी अध्यक्ष किरण सिंह देव, संगठन मंत्री अजय जामवाल और मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय को दिया, यह उनकी अपनी समझ और वरिष्ठों के प्रति सम्मान था। उन्होंने पार्टी सेवा को मां की सेवा भी कहा।
रिश्तों में यह बात भी ध्यान रखा जाता है यदि छोटों द्वारा बड़ों को उपहार दिया जाता है तो बड़े जो होते हैं उस उपहार के बदले, या बड़ा उपहार देते हैं या बड़े ही उदारता से उपहार लौटा देते हैं, यही बड़ों का बड़प्पन भी है।
जो छोटे होते हैं उपहार स्वीकार करते हैं, इनकी अपेक्षा भी रखते हैं रखा भी जाना चाहिए।
इस अनुसार यक्ष प्रश्न बनता है कि क्या अजय चंद्राकर भारतीय जनता पार्टी जिसे वे अपनी मां कहते हैं से बड़ा है, या संगठन और सत्ता नेतृत्व से बड़े हैं। यदि वे बड़े हैं तो वह उपहार पुरस्कार या सम्मान बराबर लौटा सकते हैं, यदि छोटे हैं तो मां का दिया उपहार, बड़ों का दिया भेंट कैसे लौटा सकते हैं? वस्तुत: जिस तरह से कांग्रेस ने इस घटना को कलेवर गढ़ते हुए प्रचारित किया उस आयोजन में वैसी कोई अप्रिय स्थिति नहीं थी, यह तात्कालिक रूप से औपचारिक व्यवहार मात्र था। उस दौरान जो भी आंतरिक हाव भाव रही वह प्रकट भी नहीं था लेकिन छद्म रचित मानसिकता से आलोचना की सीमा में ले जाना व्यवहारिक भी नहीं हैं।
अजय चंद्राकर जिस व्यवहारिक औपचारिकता से दूरी बनाते हैं निश्चित ही एक सफल जनप्रतिनिधि का लक्षण नहीं होना चाहिए। लोकतंत्र में तो लोक के मंतव्य के साथ अन्य हर राजनीतिक उपक्रमों के प्रति गंभीरता, सूक्ष्मता और सम्मान होना चाहिए। आप जनता के प्रतिनिधि हैं किसी भी जनप्रतिनिधि में जनता प्रथम की भावना होना भी चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति को अपनी बेबाकी और स्पष्टता की सीमा में यह ध्यान रखना चाहिए की वह स्पष्टता अप्रियता में परिणित न हों।वह अहमता की सीमा को न छुए।
कांग्रेस ने उक्त घटनाक्रम में अजय चंद्राकर के आलोचना में जिन शब्दावली का प्रयोग किया है निसंदेह अमर्यादित, अप्रासंगिक, बेमुद्दत और व्यक्तिवादी कथ्य हैं। यह छत्तीसगढ़ के लिए दुर्भाग्यजनक है कांग्रेस स्वस्थ आलोचना कभी सिख नहीं पायी, ’राहु‘ ’3 टके का व्यक्ति’ यह मुद्दा है या व्यक्तिवाद से ग्रसित मानसिकता है। यह शब्दावली कांग्रेस के अहंकार की पराकाष्ठा है। कुछेक को छोड़ कभी भी कांग्रेस ने न तो मंचों में न ही विधानसभा सत्रों में भी मुद्दे को प्राथमिकता में रखा। यदि मुद्दे प्राथमिक होते तो आज बहुत से मुद्दे हैं सरकार मुश्किल में होती या सरकार संभलकर चलती।
कांग्रेस की अहंकार से ग्रसित शब्दावली अब मुद्दे छोड़कर व्यक्ति पर होने लगी है। आलोचना सदैव ही स्वस्थ होने चाहिए। जनता को पक्ष से अपेक्षाएं तो होती है यह स्वाभाविक है लेकिन इससे अधिक अपेक्षाएं विपक्ष से होती है। जनता चाहती है कि विपक्ष जनता के जायज मांग उनसे संबंधित अधिकार और मुद्दे को शासन प्रशासन के सामने रखकर हमारे साथ में खड़े रहे। राजनीति में पक्ष और विपक्ष दोनो को अपनी जिम्मेदारी, कर्तव्य और सीमाओं का ध्यान होना चाहिए। वर्तमान परिदृश्य में इसका अभाव स्पष्टरूप से दिखता भी है। यह हैरत का विषय है कि, स्वार्थगत मुद्दे में पक्ष विपक्ष अब आपस में हाथ मिलाने से परहेज नहीं करती इसलिए आज लोकतंत्र में ’तंत्र’ अलग दिशा में है और ‘लोक’ अलग थलग बैठ सिर्फ मुकद्रष्टा बनी हुई है…!