बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के प्रमुख और नोबेल पुरस्कार विजेता Muhammad Yunus के इस्तीफे को लेकर जारी अटकलों पर विराम लगाते हुए सरकार के एक मंत्री ने स्पष्ट किया है कि “यूनुस पद छोड़ने वाले नहीं हैं। उन्हें सत्ता की कोई लालसा नहीं है।” यह बयान ऐसे समय आया है जब देश में राजनीतिक अस्थिरता के कारण यूनुस की भूमिका पर सवाल उठाए जा रहे थे।
कैसे बनी यूनुस अंतरिम सरकार के प्रमुख?
2024 के अंत में, बांग्लादेश में व्यापक छात्र आंदोलनों और विपक्षी दलों द्वारा शेख हसीना सरकार के खिलाफ चुनावों में धांधली के आरोपों के बाद राजनीतिक संकट पैदा हो गया। स्थिति को नियंत्रित करने के लिए संयुक्त राष्ट्र और कुछ अंतरराष्ट्रीय संस्थानों के सहयोग से एक तटस्थ अंतरिम सरकार के गठन की सिफारिश की गई।
मोहम्मद यूनुस, जो एक प्रसिद्ध अर्थशास्त्री और ग्रामीण बैंक मॉडल के संस्थापक रहे हैं, को इस सरकार का नेतृत्व सौंपा गया ताकि वे देश में लोकतांत्रिक प्रक्रिया को बहाल कर सकें और स्वतंत्र, निष्पक्ष चुनाव आयोजित करा सकें।
विवाद और इस्तीफे की अटकलें क्यों शुरू हुईं?
हाल के महीनों में, राजनीतिक दलों के बीच बातचीत की असफलता, सुधारों में धीमी गति और हिंसक विरोध प्रदर्शनों के कारण यह चर्चा तेज हो गई थी कि यूनुस अपनी जिम्मेदारी से पीछे हट सकते हैं।
विपक्षी दलों ने आरोप लगाया कि यूनुस ने अपेक्षित सुधार लागू नहीं किए और स्थिति पहले से भी अधिक अनिश्चित हो गई है। वहीं, पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना ने यूनुस पर सीधा आरोप लगाया कि वे अंतरराष्ट्रीय ताकतों के प्रभाव में आकर बांग्लादेश की लोकतांत्रिक व्यवस्था को कमजोर कर रहे हैं।
इन सब घटनाओं के बीच, यूनुस के संभावित इस्तीफे की खबरें सामने आने लगीं।
सरकारी मंत्री का बयान: “वो देश की सेवा कर रहे हैं”
बांग्लादेश सरकार में यूनुस के विशेष सहायक और सूचना मंत्री तैय्यब अहमद ने स्पष्ट किया,
“मोहम्मद यूनुस पूरी तरह सक्रिय हैं। उन्हें सत्ता की कोई लालसा नहीं है। उनका एक ही उद्देश्य है – देश में निष्पक्ष चुनाव कराना और लोकतंत्र को मज़बूती देना।”
उन्होंने आगे कहा कि यूनुस राजनीतिक आरोपों से विचलित नहीं होते और वे पूरी निष्ठा के साथ अपने कर्तव्यों का पालन कर रहे हैं।
आगे की राह: चुनाव और सुधार
FATF और IMF जैसी वैश्विक संस्थाएं भी बांग्लादेश की राजनीतिक स्थिरता को लेकर चिंतित हैं। ऐसे में अंतरिम सरकार की सफलता केवल यूनुस पर नहीं, बल्कि पूरे प्रशासनिक तंत्र और राजनीतिक दलों की सहमति पर निर्भर है।
माना जा रहा है कि यदि 2025 के अंत तक चुनाव नहीं हो पाते हैं, तो अंतरराष्ट्रीय दबाव और आंतरिक असंतोष दोनों ही बढ़ सकते हैं।