भारत की लोकतांत्रिक और सांस्कृतिक विविधता एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय मंच पर जोरदार ढंग से प्रस्तुत की गई जब डीएमके सांसद Kanimozhi ने स्पेन में कहा, “भारत की राष्ट्रीय भाषा कोई एक बोली नहीं, बल्कि ‘एकता और विविधता’ है।” वे ऑल पार्टी डेलिगेशन की अगुआई कर रही थीं, और उनके इस वक्तव्य ने भारतीय संविधान की भावना और देश की बहुलता को दुनिया के सामने रेखांकित किया।
क्या कहा Kanimozhi ने?
स्पेन में भारतीय समुदाय को संबोधित करते हुए जब Kanimozhi से पूछा गया कि भारत की राष्ट्रीय भाषा क्या है, तो उन्होंने जवाब दिया –
“भारत की राष्ट्रीय भाषा है एकता और विविधता। यही सबसे जरूरी संदेश है जो आज दुनिया तक पहुंचाना चाहिए।”
उनका यह बयान केवल भाषाई संदर्भ तक सीमित नहीं था, बल्कि यह एक गहरा राजनीतिक और सांस्कृतिक संकेत था कि भारत की आत्मा उसके विविध समाज, भाषाओं और संस्कृतियों में निहित है।
भाषाई विवाद के बीच आया बयान
यह बयान ऐसे समय में आया है जब डीएमके और अन्य क्षेत्रीय दल केंद्र सरकार की नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP 2020) में प्रस्तावित तीन-भाषा फॉर्मूले का विरोध कर चुके हैं। इस नीति के तहत हिंदी को प्रमुखता देने की कोशिश की आलोचना होती रही है, खासकर दक्षिण भारत के राज्यों से। डीएमके लंबे समय से केंद्र पर “हिंदी थोपने” का आरोप लगाती रही है, और कनिमोझी के इस बयान को उसी पृष्ठभूमि में देखा जा रहा है।
कनिमोझी ने यह साफ किया कि भारत कोई एकभाषीय राष्ट्र नहीं है, और किसी एक भाषा को ‘राष्ट्रीय’ कहना देश की वास्तविकता के खिलाफ है। उनका कहना था कि भारत की विविध भाषाएं, जैसे तमिल, तेलुगु, मलयालम, मराठी, कन्नड़, बंगाली, असमिया, उर्दू, और अन्य – सभी देश की आत्मा का हिस्सा हैं।
भारत का प्रतिनिधिमंडल और विदेश मंत्री से मुलाकात
स्पेन में Kanimozhi के नेतृत्व में भारत का ‘ग्रुप-6’ डेलिगेशन स्पेन के विदेश मंत्री जोसे मैनुएल अल्बारेस से भी मिला। भारतीय दूतावास ने इस बैठक की जानकारी साझा करते हुए बताया कि प्रतिनिधिमंडल ने आतंकवाद के खिलाफ भारत की स्थिति, और 22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बारे में स्पेन को अवगत कराया।
विदेश मंत्री अल्बारेस ने इस पर भारत को समर्थन दिया और कहा कि स्पेन आतंकवाद के खिलाफ भारत की लड़ाई में पूरी तरह साथ है। उन्होंने यह भी जोड़ा कि “आतंकवाद कभी जीत नहीं सकता और शांति ही विश्व का सबसे बड़ा उद्देश्य होना चाहिए।”
डेलिगेशन का उद्देश्य – संवाद और सांस्कृतिक सेतु
इस डेलिगेशन का उद्देश्य केवल राजनीतिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक संवाद को भी बढ़ावा देना है। Kanimozhiने कहा कि भारत विश्व को एक संदेश देना चाहता है – कि विविधता के साथ लोकतांत्रिक सहअस्तित्व संभव है। उन्होंने बताया कि भारत में इतने धर्म, भाषाएं और जातियां होने के बावजूद देश एकजुट है, और यह अपने आप में एक मिसाल है।
विपक्ष की राजनीति नहीं, भारतीय संस्कृति की पहचान
हालांकि कनिमोझी डीएमके की सांसद हैं और अक्सर केंद्र सरकार की नीतियों की आलोचना करती रही हैं, लेकिन इस मंच पर उनका संदेश राजनीति से ऊपर और भारतीय संस्कृति के सार को दर्शाता है। उनके अनुसार, “भारत की आत्मा किसी एक भाषा, धर्म या जाति में नहीं बसती, बल्कि इसकी विविधता में ही उसका लोकतांत्रिक और ऐतिहासिक चरित्र निहित है।”
कनिमोझी का यह बयान न केवल भारत की वास्तविकता को दर्शाता है, बल्कि वैश्विक मंच पर एक स्पष्ट संदेश देता है कि भारत की ताकत उसकी विविधता में है, न कि एकरूपता में। जब पूरी दुनिया पहचान की राजनीति और नस्लीय व भाषाई संघर्षों से जूझ रही है, तब भारत जैसे देश का यह रुख एक प्रेरणा बन सकता है।
स्पेन में यह प्रतिनिधिमंडल भारत की विदेश नीति, आतंकी विरोधी रुख और सांस्कृतिक समरसता को सफलतापूर्वक प्रस्तुत कर रहा है। कनिमोझी का यह वक्तव्य बताता है कि भारत आज भी विविधता में एकता का सबसे बड़ा उदाहरण है – एक ऐसी राष्ट्रीय भाषा जो शब्दों में नहीं, संवेदनाओं और मूल्यों में व्यक्त होती है।