🌱तस्वीर में आप टमाटर के पौधे को देख रहे होंगे, शायद किसी यात्री ने टमाटर खाकर उसके बीज को ट्रेन से फेंक दिया होगा… ये पौधा मिट्टी की छाती फाड़कर नही बल्कि पत्थरों को चीरकर बाहर आया है।
जब ये और भी नन्हा सा होगा, तब शताब्दी और राजधानी जैसे तूफान से भी तेज दौड़ती ट्रेनों के बिल्कुल पास से गुजरते हुए भी इसने सिर्फ बढ़ना सीखा ओर बढ़ते-बढ़ते आखिरकार इसने एक टमाटर को जन्म दे ही दिया।
इसे मात्र एक जगह स्थिर व अचल जीवन मिला और तो और इसको जीवित रहने के लिए कम से कम मिट्टी और पानी तो मिलना चाहिए ही था, जो इसका हक भी था लेकिन इस पौधे ने बिना जल, बिना मिट्टी के, बिना सुविधा के अपने आपको बड़ा किया, फला फूला और जीवन का उद्देश्य पूरा किया।
जिन लोगो को लगता है कि जीवन में हम तो असफल हो गए हम तो जीवन मे कुछ कर ही नहीं सकते, उनके लिये यह टमाटर का पौधा एक संदेश है, जीवन का नाम है निरन्तर संघर्ष।
जीवनधारा की प्रतिकूलता में मछली सी गति और समुद्री लहर जैसे चट्टानों से भिड़ने की हिम्मत हो…
तभी जीवन सार्थक होता है..!
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प्रेरणा: जीवनधारा की प्रतिकूलता में मछली सी गति और समुद्री लहर जैसे चट्टानों से भिड़ने की हिम्मत होनी चाहिए
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