सीज फायर(Cease fire) पर ट्रंप के बयान को सिरे सेे खारिज करने के कारण आ सकती है बयानों में तल्खी
अमेरिका भारत (India -America relations) के साथ व्यापार नीतियों में सख्ती बरत सकता है
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अमेरिका-भारत (India -America relations) के भावी संबंधों पर तथ्यात्मक विश्लेषण
PIONEERDIGITAL DESK
ट्रंप बडबोले हैं, राष्ट्रपति बनने के बाद सेे ही वे भारत के मामले में ही नहीं कई अन्य देशों के संंदर्भ में विवादास्पद बयान देते रहे हैं। भारत-पाक सीज फायर का मसला भी ऐसा ही एक मसला है, यह भारत के अमेरिकी मध्यस्थता को खारिज करने से स्पष्ट हो गया। अमेरिकी मध्यस्थता को खारिज कर द्विपक्षीय समाधान पर जोर देने का फैसला भारत की स्वतंत्र और दृढ़ विदेश नीति को दर्शाता है। यह कदम, विशेष रूप से कश्मीर जैसे संवेदनशील मुद्दे पर, शिमला समझौते (1972) और लाहौर घोषणा (1999) के अनुरूप है, जो भारत-पाकिस्तान के बीच सभी विवादों को द्विपक्षीय रूप से हल करने की नींव रखते हैं। ट्रंप की मध्यस्थता की पेशकश और उनकी घोषणाओं का इस संदर्भ में प्रभावहीन रहना भारत की क्षेत्रीय संप्रभुता और स्वायत्तता पर बल देने का प्रतीक है। लेकिन अब सवाल यह उठता है कि भारत के इस कदम के बाद अमेरिका-भारत संबंधों पर क्या प्रभाव पड सकता है।
भारत और अमेरिका के बीच रणनीतिक साझेदारी, विशेष रूप से हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन को संतुलित करने और रक्षा सहयोग (जैसे QUAD और 2+2 डायलॉग) के संदर्भ में, मजबूत बनी रहेगी। हालांकि, ट्रंप की मध्यस्थता की कथित घोषणा भारत द्वारा इसे स्पष्ट रूप से खारिज करने से अल्पकालिक कूटनीतिक असहजता पैदा कर सकती है। ट्रंप की अप्रत्याशित शैली के कारण बयानबाजी में तीखापन आ सकता है। ट्रंप ने अपनी मध्यस्थता की घोषणाओं (जैसे 10-11 मई 2025 को सोशल मीडिया पोस्ट) के माध्यम से भारत-पाकिस्तान तनाव में अमेरिका की भूमिका को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया, जिसे भारत ने विदेश मंत्रालय के जरिए खारिज कर दिया। यह भारत की ओर से एक मजबूत संदेश है कि वह अपनी विदेश नीति में किसी तीसरे पक्ष को हस्तक्षेप की अनुमति नहीं देगा। ट्रंप की व्यक्तिगत छवि को इस अस्वीकृति से ठेस पहुंच सकती है, जिसका असर उनकी भारत के प्रति भविष्य की बयानबाजी या नीतियों पर पड़ सकता है।
बढ सकता है व्यापार और आर्थिक संबंध में तनाव
ट्रंप ने भारत और पाकिस्तान के साथ व्यापार बढ़ाने की बात कही थी, लेकिन भारत की इस अस्वीकृति के बाद अमेरिका भारत के साथ व्यापार नीतियों में सख्ती बरत सकता है। ट्रंप पहले ही भारत पर उच्च टैरिफ (जैसे अमेरिकी वाहनों पर 100% टैरिफ) की आलोचना कर चुके हैं। यदि ट्रंप इस घटना को व्यक्तिगत रूप से लें, तो व्यापार वार्ताओं में भारत पर दबाव बढ़ सकता है, जैसे टैरिफ वृद्धि या व्यापार समझौतों में कठिन शर्तें। भारत का यह रुख वैश्विक मंच पर उसकी स्वतंत्र छवि को मजबूत करता है, लेकिन अमेरिका के कुछ हलकों में इसे ‘अहसान न मानने’ वाला कदम माना जा सकता है। दूसरी ओर, यह भारत की उस नीति को रेखांकित करता है कि वह क्षेत्रीय मामलों में अपनी प्राथमिकता और शर्तों को प्राथमिकता देता है। इससे भारत-अमेरिका संबंधों में दीर्घकालिक नीतिगत बदलाव की संभावना कम है, क्योंकि दोनों देशों के रणनीतिक हित परस्पर जुड़े हैं।
पाकिस्तान Pakistan के साथ अमेरिका की स्थिति
पाकिस्तान ने ट्रंप की मध्यस्थता का स्वागत किया, जिससे अमेरिका-पाकिस्तान संबंधों में अस्थायी सुधार दिखता है। भारत की अस्वीकृति के बावजूद, अमेरिका दक्षिण एशिया में संतुलन बनाए रखने की कोशिश करेगा, जिसका मतलब है कि वह भारत को नाराज करने से बचेगा। हालांकि, यदि अमेरिका पाकिस्तान को अधिक तरजीह देता है, तो भारत इसे अपनी रणनीतिक स्थिति के लिए चुनौती के रूप में देख सकता है।ऐसे में भारत को अपनी स्थिति स्पष्ट करने के लिए कूटनीतिक संतुलन बनाए रखना होगा, ताकि अमेरिका के साथ सहयोग प्रभावित न हो। ट्रंप की अप्रत्याशित शैली के कारण, भारत को भविष्य में ऐसी घोषणाओं का जवाब देने के लिए और अधिक सतर्क और सक्रिय कूटनीति अपनानी होगी।
ट्रंप के बयान कैसे कैसे
डोनाल्ड ट्रंप का दूसरा राष्ट्रपति कार्यकाल (20 जनवरी 2025 से शुरू) उनकी पहली अवधि (2017-2021) की तरह ही विदेश नीति में विरोधाभासों और अप्रत्याशितता से भरा प्रतीत होता है। उनकी नीतियां “अमेरिका फर्स्ट” के सिद्धांत पर आधारित हैं, जो वैश्विक नेतृत्व, आर्थिक संरक्षणवाद, और क्षेत्रीय संतुलन के बीच तनाव पैदा करती हैं।रूस-यूक्रेन युद्ध से लेकर भारत-पाकिस्तान संघर्ष तक, राष्ट्रपति ट्रंप समय-समय पर अपने बयान बदलते रहे हैं। इतना ही नहीं वे डेनमार्क से ग्रीनलैंड खरीदने, कनाडा को अमेरिका का 51वां राज्य बनाने से लेकर ग़ज़ा पट्टी पर ‘कब्जा’ करने जैसे विवादास्पद बयान दे चुके हैं।
प्रमुख विवादास्पद बयान
ट्रंप ने कनाडा को अमेरिका का 51वाँ राज्य बनाने और ग्रीनलैंड को डेनमार्क से खरीदने जैसे बयान दिए, जिन्हें कई देशों ने अपमानजनक और अव्यवहारिक माना। )
पनामा नहर पर अमेरिकी नियंत्रण की बात भी उन्होंने उठाई, जिससे मध्य और दक्षिण अमेरिकी देशों में असंतोष फैला।
ट्रंप ने ग़ज़ा की पूरी आबादी को अन्य देशों में स्थानांतरित करने का सुझाव दिया, जिसे मध्य-पूर्व के देशों ने अस्वीकार्य और भड़काऊ बताया। इस बयान ने क्षेत्रीय तनाव को और बढ़ाया।
ट्रंप ने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और चीनी लोगों के प्रति “प्यार” व्यक्त किया, लेकिन साथ ही दक्षिण चीन सागर में चीन की गतिविधियों पर सख्त रुख अपनाने की बात की
रूस को टैरिफ सूची से बाहर रखने पर सवाल उठे, क्योंकि ट्रंप ने रूस-यूक्रेन युद्ध को समाप्त करने को प्राथमिकता बनाया और रूस के साथ व्यापारिक छूट की संभावना जताई।[](
ट्रंप ने ईरान से तेल खरीदने वाले देशों पर द्वितीयक प्रतिबंध लगाने की धमकी दी, जिससे भारत जैसे देशों पर दबाव बढ़ा।
सऊदी अरब को अब्राहम समझौते में शामिल करने की बात कही, लेकिन खाड़ी देशों ने उनकी नीतियों को संदेह की नज़र से देखा, क्योंकि मध्य-पूर्व में अमेरिका की भूमिका पर सवाल उठ रहे हैं।
ट्रंप ने दावा किया कि उन्होंने भारत और पाकिस्तान को व्यापारिक दबाव डालकर युद्धविराम के लिए मजबूर किया। भारतीय विदेश मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि ऐसी कोई व्यापारिक बातचीत नहीं हुई ।
– ट्रंप ने वेनेज़ुएला से आने वाले प्रवासियों को “हत्यारे” और “हिंसक अपराधी” करार दिया, विशेष रूप से ट्रेन डी अरागुआ गिरोह को “विदेशी आतंकवादी संगठन” बताया। इस बयान ने लैटिन अमेरिकी देशों में नाराज़गी पैदा की।
विवादास्पद कार्रवाइयाँ
वैश्विक टैरिफ नीति
- ट्रंप ने भारत, चीन सहित लगभग 100 देशों पर रेसिप्रोकल टैरिफ (26-27%) लागू किए, दावा करते हुए कि ये देश अमेरिकी उत्पादों पर उच्च टैरिफ लगाते हैं। भारत के फार्मास्यूटिकल निर्यात को छूट दी गई, लेकिन अन्य क्षेत्रों पर असर पड़ा।
- वेनेज़ुएला से तेल खरीदने वाले देशों (जैसे भारत) पर 25% टैरिफ लगाया गया, जिससे वैश्विक तेल कीमतों में उछाल की आशंका बढ़ी।
- रूस को टैरिफ सूची से बाहर रखा गया, जिसे पश्चिमी देशों ने पक्षपातपूर्ण माना।
अवैध प्रवासियों की वापसी
- ट्रंप ने “स्व-निर्वासन” कार्यक्रम शुरू किया, जिसके तहत अवैध प्रवासियों को जबरन उनके देश भेजा जा रहा है। भारत से 200 से अधिक नागरिकों को सैन्य जहाज से वापस भेजा गया, जिसे कुछ ने अपमानजनक बताया।
- वेनेज़ुएला के प्रवासियों को विशेष रूप से निशाना बनाया गया, जिससे क्षेत्रीय तनाव बढ़ा।
विदेशी सहायता में कटौती
- ट्रंप ने कई देशों को दी जाने वाली अमेरिकी सहायता में भारी कटौती की, जिसका असर भारत, अफ्रीकी देशों, और अन्य विकासशील राष्ट्रों पर पड़ा। इससे स्वास्थ्य, शिक्षा, और कृषि परियोजनाएँ प्रभावित हुईं।
रूस-यूक्रेन युद्ध में रुख
- ट्रंप ने रूस के प्रति नरम रुख अपनाया और युद्धविराम के लिए रूस के साथ बातचीत को प्राथमिकता दी। रूस पर टैरिफ न लगाने के फैसले ने यूरोपीय सहयोगियों में बेचैनी पैदा की।
- उन्होंने यूक्रेन को सहायता कम करने के संकेत दिए, जिसे यूरोप ने अमेरिकी प्रतिबद्धता पर सवाल के रूप में देखा।
एच-1बी वीजा और ओपीटी पर प्रतिबंध :
- ट्रंप ने एच-1बी वीजा और वैकल्पिक व्यावहारिक प्रशिक्षण (OPT) पर संभावित प्रतिबंधों की बात की, जिससे भारत, चीन, और अन्य देशों के पेशेवरों और छात्रों पर असर पड़ सकता है।
विदेशी फिल्मों पर टैरिफ
- ट्रंप ने अमेरिका के बाहर बनी फिल्मों पर 100% टैरिफ लगाने की प्रक्रिया शुरू की, जिससे भारत (बॉलीवुड), दक्षिण कोरिया, और अन्य देशों के फिल्म उद्योग पर असर पड़ सकता है।
सैन्य और कूटनीतिक हस्तक्षेप
- ट्रंप ने भारत के तेजस लड़ाकू विमान के लिए इंजन आपूर्ति पर रोक लगाई, जिससे भारत की रक्षा आत्मनिर्भरता को झटका लगा।
- उनकी खाड़ी देशों की यात्रा और अब्राहम समझौते को बढ़ावा देने की कोशिश को मध्य-पूर्व में संदेह के साथ देखा गया, क्योंकि क्षेत्रीय देश बहुध्रुवीय दुनिया की वकालत कर रहे हैं।
दुनिया की ट्रंप के लिए प्रतिक्रियाएँ और प्रभाव
भारत: भारत ने ट्रंप के बयानों (विशेष रूप से कश्मीर पर) को खारिज किया और टैरिफ युद्ध में संतुलित रुख अपनाया। कूटनीति के जरिए व्यापार समझौते की दिशा में प्रयास जारी हैं।
पाकिस्तान: पाकिस्तान ने ट्रंप के युद्धविराम दावों का स्वागत किया, लेकिन भारत के साथ तनाव बना रहा।
मध्य-पूर्व: सऊदी अरब, यूएई जैसे देश ट्रंप की नीतियों को लेकर सतर्क हैं, क्योंकि वे चीन और अन्य शक्तियों के साथ संतुलन बनाना चाहते हैं।
यूरोप: रूस के प्रति ट्रंप की नरमी और टैरिफ नीतियों ने यूरोपीय सहयोगियों में असमंजस पैदा किया।
लैटिन अमेरिका: वेनेज़ुएला और अन्य देशों के प्रवासियों पर सख्ती ने क्षेत्रीय नाराज़गी को बढ़ाया।
चीन: ट्रंप की दोहरी नीति (प्रशंसा और टैरिफ) ने वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में अनिश्चितता पैदा की।