राहुल गांधी RAHUL GANDHI के बार-बार बिहार दौैरे से विचलित दिख रही सरकार
वोट बैैंक में सेेध लगाने के साथ यूूथ को भी प्रभावित करनेे की कोशिश में कांग्रेस
महागठबंधन दे पाएगा चुनौती एनडीए सरकार को
PIONEER DIGITAL DESK
बिहार में शिक्षा व्यवस्था रसातल में है। तीन साल की डिग्री लेेने में छह साल का वक्त लगता है। दोगुना समय जाया कर डिग्री मिल भी गई तो सरकारी और गैैर सरकारी नौकरी में भर्ती की प्रक्रियाए जटिल और भेदभाव पूर्ण। छात्र दलित और पिछड़े वर्गों के हो तो अवसरों की और भी कमी। इस पर राहुल गांधी का बार’बार बिहार आना भाजपा और नितीश को डरा रहा है। कांग्रेस ने अपनी शिक्षा न्याय संवाद यात्रा के जरिए इन्हीं तमाम मसलों पर छात्रों और खासतौैर पर दलित और पिछड़े वर्ग के लोगों सेे संवाद स्थापित करना शुरू किया है। जानकारों की माने तो इस यात्रा के जरिए कांग्रेस सरकार बनाने में सफल भले ही नहीं लेकिन भाजपा और जदयू के दलित और पिछड़े वर्ग के बडृे वोट बैंक में सेंघ लगानेे में कामयाब हो सकती है।
राहुल गांधी के नेतृत्व में 15 मई शुरू हुई इस यात्राा को पहलें दिन ही रोकने की कोशिशें हुई। तमाम रुकावटों के बीच दरभंगा में राहुल गांधी ने छात्रों के साथ ‘शिक्षा न्याय संवाद’ किया। उनका कार्यक्रम स्थल बदल दिया गया। आंबेडकर छात्रावास में बिना अनुमति घुसने पर राहुल गांधी के खिलाफ दो एफआईआर भी दर्ज की गई है।दरअसल प्रशासन ने दरभंगा के आंबेडकर कल्याण छात्रावास में कांग्रेस को यह कार्यक्रम करने की इजाजत नहीं दी थी। दरभंगा जिला प्रशासन ने कांग्रेस को टाउन हॉल में कार्यक्रम करने को कहा था। इसके बावजूद दरभंगा पहुंचने के बाद राहुल गांधी आंबेडकर छात्रावास में ही ‘शिक्षा न्याय संवाद’ करने पहुंच गए। यहां राहुल गांंधी ने अपना भाषण भी दिया और कहा कि कोई शक्ति उन्हें रोक नहीं सकती है। अपने भाषण में खुुलकर बिहार की मौजूदा व्यवस्था पर चोेट की।
वोट बैक में सेध लगाने का बडा खतरा
बिहार में नीतीश सरकार की ओर से कराई गयी जातीय जनगणना के अनुसार बिहार की कुल जनसंख्या 13 करोड़ 7 लाख 25310 है.आंकड़ों के अनुसार बिहार सरकार की सूची में 215 जातियां हैं. इनमें अनुसूचित जाति में 22, अनुसूचित जनजाति में 32, पिछड़ा वर्ग में 30, अत्यंत पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) में 113 और उच्च जाति में 7 जातियों की गणना की गई है। सबसे बड़ी संख्या अत्यंत पिछड़ा वर्ग की है जो 36.01 फीसदी (4,70,80,514) है. वहीं पिछड़ा वर्ग 27.12 फीसदी (3,54,63,936) है. जबकि अनुसूचित जाति का हिस्सा 19.65 % (2,56,89,820) है. वहीं अनुसूचित जनजाति की आबादी 21,99,361 है जो कि कुल आबादी का 1.6824% है। शिक्षा न्याय संवाद का फोकस दलित और पिछड़े वर्गों पर है, जो बिहार में महत्वपूर्ण मतदाता आधार हैं। कांग्रेस इस अभियान के जरिए इन समुदायों को लामबंद करने की कोशिश कर रही है, जो राजद के साथ मिलकर महागठबंधन की स्थिति को मजबूत कर सकता है। एनडीए इस जातिगत ध्रुवीकरण को रोकना चाहती है। चुनावी तैयारियों पर असर बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की तैयारियां जोरों पर हैं। एनडीए, खासकर नीतीश कुमार, अपनी विकास और सुशासन की छवि को बनाए रखना चाहते हैं। शिक्षा जैसे मुद्दे पर विपक्ष का आक्रामक रुख उनकी इस छवि को नुकसान पहुंचा सकता है।
राहुल का बार-बार दौरा चुनौती बन रहा
राहुल गांधी का बार-बार बिहार दौरा (पिछले पांच महीनों में चौथी बार) और शिक्षा जैसे संवेदनशील मुद्दे को उठाना एनडीए के लिए चुनौती बन रहा है। बिहार में युवा और छात्र वर्ग एक बड़ा मतदाता समूह है, और शिक्षा से जुड़े मुद्दे जैसे बेरोजगारी, पेपर लीक, और सरकारी नौकरियों में अनियमितताएं (जैसे BPSC विवाद) उनकी नाराजगी को भड़का सकते हैं। एनडीए को डर है कि यह अभियान उनकी सरकार की कमियों को उजागर कर सकता है। राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा और न्याय यात्रा ने पहले ही उनकी छवि को एक जमीनी नेता के रूप में मजबूत किया है। बिहार में उनकी सक्रियता, खासकर तेजस्वी यादव के साथ गठजोड़, एनडीए के लिए खतरे की घंटी है। एनडीए इस अभियान को रोककर राहुल के प्रभाव को सीमित करना चाहती है।
शिक्षा को मुद्दा बनाने के मायने
बिहार में शिक्षा व्यवस्था कई समस्याओं से जूझ रही है, जैसे स्कूलों में बुनियादी ढांचे की कमी, शिक्षकों की कमी, और सरकारी नौकरी परीक्षाओं में अनियमितताएं। कांग्रेस इस अभियान के जरिए इन मुद्दों को केंद्र में लाकर एनडीए सरकार की विफलताओं को उजागर करना चाहती है। शिक्षा के मुददे से बिहार में युवा मतदाता वर्ग (18-35 आयु वर्ग) को टारगेट किया गया है। यह एक बड़ा वोट बैंक हैं। BPSC और अन्य परीक्षाओं में अनियमितताओं के खिलाफ हाल के छात्र आंदोलनों ने सरकार के खिलाफ असंतोष को बढ़ाया है। कांग्रेस इस यात्रा के जरिए युवाओं के असंतोष को भुनाने की कोशिश कर रही है।
राहुल बनाम मोदी की लड़ाई तेज करना
कुछ विश्लेषकों का मानना है कि राहुल गांधी बिहार की इस लड़ाई को “राहुल बनाम मोदी” के रूप में पेश करने की रणनीति पर काम कर रहे हैं। इससे राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस की छवि मजबूत होगी और बिहार में विपक्षी गठबंधन को प्रेरणा मिलेगी। तेजस्वी यादव और राहुल गांधी की जोड़ी बिहार में महागठबंधन की रीढ़ है। यह अभियान दोनों नेताओं के बीच समन्वय को बढ़ाने और कार्यकर्ताओं में उत्साह जगाने का काम कर रहा है।
विस चुनाव में कांग्रेस को कितना माइलेज
बिहार में शिक्षा और रोजगार से जुड़े मुद्दे युवाओं के लिए प्राथमिकता हैं। यदि कांग्रेस इस अभियान के जरिए इन मुद्दों को प्रभावी ढंग से उठा पाती है, तो उसे युवा मतदाताओं का समर्थन मिल सकता है। BPSC जैसे मुद्दों पर हाल के छात्र आंदोलनों ने पहले ही सरकार के खिलाफ माहौल बनाया है। दलित और OBC समुदायों पर फोकस करने से कांग्रेस को इन समुदायों के बीच अपनी पैठ बढ़ाने का मौका मिलेगा। खासकर, राजद के यादव और मुस्लिम वोट बैंक के साथ मिलकर यह महागठबंधन को मजबूत कर सकता है। राहुल गांधी की सक्रियता और जमीनी मुद्दों पर फोकस ने उनकी छवि को मजबूत किया है। यह अभियान उनकी विश्वसनीयता को और बढ़ा सकता है, खासकर उन मतदाताओं में जो नीतीश और भाजपा से नाराज हैं। यह अभियान राजद और कांग्रेस के बीच बेहतर तालमेल को बढ़ावा देगा। तेजस्वी और राहुल की जोड़ी यदि प्रभावी ढंग से काम करती है, तो यह एनडीए के लिए बड़ी चुनौती बन सकती है।
सीटों में इजाफा कितना
2020 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 19 सीटें जीती थीं। यदि यह अभियान प्रभावी रहा, तो कांग्रेस 25-30 सीटों तक पहुंच सकती है, खासकर राजद के साथ बेहतर सीट-बंटवारे के साथ। वहीं महागठबंधन को एनडीए के 225 सीटों के लक्ष्य के खिलाफ एक मजबूत चुनौती पेश करने में मदद कर सकता है।
कांंग्रेस के लिए चुनौतियां
– बिहार में कांग्रेस का संगठनात्मक ढांचा राजद और जदयू-भाजपा की तुलना में कमजोर है। अभियान का प्रभाव तभी होगा, जब इसे जमीनी स्तर पर प्रभावी ढंग से लागू किया जाए।
– नीतीश कुमार की सुशासन और विकास की छवि अभी भी बिहार के कुछ हिस्सों में मजबूत है। उनकी रणनीति, जैसे प्रगति यात्रा और उनके बेटे निशांत को लॉन्च करना, एनडीए को सहानुभूति और समर्थन दिला सकती है।
– भाजपा का मजबूत संगठन, सोशल मीडिया रणनीति, और राष्ट्रीय स्तर पर मोदी की लोकप्रियता एनडीए को बढ़त देती है। कांग्रेस के लिए इस मशीनरी को चुनौती देना आसान नहीं होगा
– यदि कांग्रेस का अभियान केवल दलित और OBC पर केंद्रित रहता है, तो सवर्ण और अन्य समुदायों में इसका उल्टा असर हो सकता है। बिहार में जातिगत समीकरण बहुत जटिल हैं।
– एनडीए सरकार का प्रशासनिक दबाव (जैसे अनुमति रद्द करना, पुलिस कार्रवाई) इस अभियान की गति को धीमा कर सकता है
ये पांच बडे बदलाव लाना चाहती है कांग्रेस बिहार में
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50% आरक्षण की सीमा हटाओ !
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SC-ST सब-प्लान लागू करो!
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शिक्षा का इन्फ्रास्ट्रक्चर बेहतर करो !
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कर्जा नहीं, नौकरी दो!
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3 साल की डिग्री, 3 साल में ही दो!