नई दिल्ली । अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच हाल ही में हुई बातचीत के बाद यूक्रेन युद्ध को लेकर बड़ी कूटनीतिक हलचल देखने को मिली है। ट्रंप ने पहले जहाँ युद्ध को रोकने के लिए 30 दिन के पूर्ण सीजफायर (संघर्षविराम) की बात कही थी, अब उन्होंने उस प्रस्ताव से पीछे हटते हुए सीधे संवाद और समझौते पर ज़ोर दिया है।
रूस की तरफ़ से शर्तें सख़्त
बातचीत में पुतिन ने सीजफायर के लिए कई शर्तें रखीं, जिनमें शामिल हैं:
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यूक्रेन की नाटो सदस्यता पर रोक
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पश्चिमी देशों द्वारा यूक्रेन को दी जा रही सैन्य और खुफिया सहायता को समाप्त करना
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रूस द्वारा कब्जे में लिए गए क्षेत्रों पर यूक्रेन की दावा वापसी
इन शर्तों को यूक्रेन ने पूरी तरह खारिज कर दिया है।
ज़ेलेन्स्की ने पुतिन पर लगाया “रणनीतिक धोखा” का आरोप
यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेन्स्की ने इन प्रस्तावों को “मैनिपुलेटिव” और “एकतरफा” करार देते हुए कहा कि यह शांति वार्ता की आड़ में रूस की स्थिति मजबूत करने की चाल है। उनका कहना है कि यूक्रेन किसी भी हालत में अपनी संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता से समझौता नहीं करेगा।
ट्रंप के बदले रुख पर सवाल
ट्रंप का रुख अचानक बदल जाना अंतरराष्ट्रीय राजनीति में नई चर्चा का विषय बन गया है। कई सुरक्षा विशेषज्ञ मानते हैं कि ट्रंप के बयान से रूस को रणनीतिक बढ़त मिल सकती है और इससे पश्चिमी देशों की सामूहिक रणनीति को धक्का लग सकता है।
यूरोप और ब्रिटेन ने बढ़ाए दबाव
इस बीच, यूरोपीय संघ और ब्रिटेन ने रूस के खिलाफ नए आर्थिक और सैन्य प्रतिबंधों की घोषणा की है। इनमें रूसी ऊर्जा कंपनियों, हथियार उद्योग और वित्तीय संस्थानों को निशाना बनाया गया है। हालांकि, ट्रंप ने इन प्रतिबंधों का खुलकर समर्थन नहीं किया और “सीधे डिप्लोमैटिक डील” पर फोकस रखा।
विशेषज्ञों की राय: शांति की उम्मीद कम
राजनयिक विश्लेषकों का मानना है कि:
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पुतिन की शर्तें अस्वीकार्य हैं और वार्ता को जटिल बनाती हैं।
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ट्रंप का रुख रूस को रणनीतिक समय और अंतरराष्ट्रीय दबाव से राहत दे सकता है।
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यूक्रेन के खिलाफ सैन्य कार्रवाई जल्द थमने के कोई संकेत नहीं मिल रहे।