नई दिल्ली: भारतीय जनता पार्टी (BJP) में जल्द ही बड़ा संगठनात्मक बदलाव देखने को मिल सकता है। मौजूदा राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा का कार्यकाल खत्म होने जा रहा है, और पार्टी अब उनके उत्तराधिकारी के नाम पर अंतिम फैसला करने के करीब है। हाल ही में जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के चलते अध्यक्ष चुनाव की प्रक्रिया थोड़ी देर के लिए टाल दी गई थी। लेकिन अब जब हालात सामान्य हो गए हैं, तो मई के अंत तक नए अध्यक्ष के नाम की घोषणा की पूरी संभावना है।
धर्मेन्द्र प्रधान बनाम भूपेन्द्र यादव
धर्मेन्द्र प्रधान के पास संगठन और सरकार दोनों का अच्छा अनुभव है। वह शिक्षा मंत्री हैं और कई चुनावों में पार्टी की ओर से प्रभारी भी रह चुके हैं। वहीं, भूपेन्द्र यादव भी अनुभवी संगठनकर्ता माने जाते हैं और उन्होंने बिहार में संगठन को मजबूती देने में अहम भूमिका निभाई है। सूत्रों का मानना है कि भूपेन्द्र यादव को थोड़ी प्राथमिकता दी जा रही है क्योंकि पार्टी हिंदी पट्टी के सामाजिक समीकरणों को साधना चाहती है।
ओबीसी (OBC) चेहरा क्यों है जरूरी?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी ने बीते कुछ वर्षों में ओबीसी (OBC) वोट बैंक को लगातार मजबूत करने की कोशिश की है। 2024 के लोकसभा चुनाव में भी यह रणनीति साफ दिखाई दी। अब जब उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में विधानसभा चुनाव आने वाले हैं, ऐसे में पार्टी किसी ओबीसी नेता को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाकर एक मजबूत सामाजिक संदेश देना चाहती है। यूपी और बिहार में यादव, कुर्मी, निषाद, कुशवाहा, तेली जैसी जातियों का बड़ा वोटबैंक है, जो पारंपरिक रूप से समाजवादी पार्टी (सपा) और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के साथ रहा है। अगर बीजेपी इन जातियों में सेंध लगाने में सफल होती है, तो विपक्ष की राह और मुश्किल हो सकती है।
राजनीतिक रणनीति के संकेत
बिहार में 2025 के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं। बीजेपी इस बार अपने गठबंधन (NDA) के तहत सरकार में और मजबूत स्थिति चाहती है। भूपेन्द्र यादव पहले भी बिहार में संगठनात्मक काम कर चुके हैं और वहां के जातीय समीकरणों को अच्छी तरह समझते हैं।वहीं धर्मेन्द्र प्रधान का प्रभाव भी पूर्वी भारत, खासकर ओडिशा, झारखंड और बिहार के सीमावर्ती इलाकों में बढ़ा है। वे पार्टी के लिए एक सॉफ्ट इमेज वाले नेता माने जाते हैं और युवाओं में उनकी अच्छी पकड़ है।
क्या यह जोड़ी फिर साथ काम करेगी?
पार्टी सूत्रों का कहना है कि धर्मेन्द्र प्रधान और भूपेन्द्र यादव की जोड़ी पहले भी कई राज्यों में संगठनात्मक चुनावों और प्रचार अभियानों में काम कर चुकी है। चाहे वह गुजरात, कर्नाटक हो या उत्तराखंड – इस जोड़ी की रणनीति ने पार्टी को जीत दिलाई है। अगर इनमें से किसी एक को अध्यक्ष बनाया जाता है, तो दूसरे को संगठन में कोई और महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी जा सकती है।
क्या सपा-राजद को लगेगा झटका?
अगर बीजेपी एक प्रभावशाली ओबीसी नेता को पार्टी का मुखिया बनाती है, तो यह सपा और राजद जैसी क्षेत्रीय पार्टियों के लिए बड़ी चुनौती होगी। ये पार्टियां लंबे समय से ओबीसी वोटबैंक के सहारे अपनी राजनीति करती रही हैं। लेकिन बीजेपी अब इस पर सीधा दावा ठोकने की तैयारी में है।
नया अध्यक्ष कब तक?
बीजेपी की योजना है कि मई के अंत तक नए अध्यक्ष की घोषणा हो जाए, जिससे नए नेतृत्व को कम से कम 100 दिन मिल सकें बिहार चुनाव की तैयारी के लिए। यह वक्त संगठन को मजबूत करने और चुनावी रणनीति पर काम करने के लिए काफी अहम होगा।